राज्यपाल आदिवासी समन्वय मंच भारत द्वारा बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर आयोजित वेबिनार में हुई शामिल
रायपुर. बिरसा मुंडा जी ऐसे ही एक युगांतरकारी शख्सियत थे, जिन्होंने अल्प अवधि में एक जननायक की पहचान बनाई और कड़ा संघर्ष किया। वे राष्ट्रनायक थे तो जन-जन की आस्था के केन्द्र भी थे। उक्त बातें राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने बिरसा मुण्डा जयंती के अवसर पर आदिवासी समन्वय मंच भारत द्वारा आयोजित वेबिनार में कही। इस अवसर पर राज्यपाल ने आजादी के महानायक बिरसा मुंडा का नमन भी किया।
राज्यपाल ने कहा कि किसी महापुरूषों के कार्यों, अवदानों एवं जीवन का मूल्यांकन इस बात से होता है कि उन्होंने राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्याओं का समाधान किस सीमा तक किया, कितने कठोर संघर्षों से लोहा लिया। उन्होंने कहा कि बिरसा मुंडा नेे शोषण, गुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी चिंतन से आदिवासी समाज की दशा एवं दिशा बदल दी। साथ ही आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने के खिलाफ महाविद्रोह ‘ऊलगुलान’ चलाकर तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती भी दी।
सुश्री उइके ने कहा कि बिरसा मुण्डा ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किए गए कानूनों के खिलाफ तथा उस समय की व्यवस्था और अंधविश्वासों के विरूद्ध संघर्ष करने के लिए आदिवासियों को संगठित किया। बिरसा मुंडा ने सिर्फ अपने पारंपरिक तीर-कमान से ही बंदूकों और तोपों से लैस अंग्रेजी शासन को हिलाकर रख दिया था। सीमित संसाधन होने के बावजूद उन्होंने ब्रिटिश शासन को कड़ी टक्कर दी। उन्होंने अंग्रेजों से न केवल राजनीतिक आजादी के लिए संघर्ष किया, बल्कि आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी।
राज्यपाल ने कहा कि बिरसा मुण्डा ने अनुभव किया कि आदिवासी समाज सामाजिक कुरीतियों और आडंबरों से घिरा हुआ है। इसे देखते हुए उन्होंने समाज को इन कुरीतियों से दूर होने और समाज में प्रचलित आडंबरों के खिलाफ लोगों को जागरूक किया और समाज को अच्छाईयों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया।
राज्यपाल ने कहा कि भगवान बिरसा मुण्डा, गुण्डाधुर और शहीद वीर नारायण सिंह जैसे अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों तथा महानायकों की बदौलत हमें अमूल्य आजादी मिली है। उन्होंने ब्रिटिश शासन काल के परतंत्रता से मुक्ति दिलाई पर उनका सपना अभी भी पूरा होना बाकी है। इसके लिए हमें सामाजिक बुराईयों, अशिक्षा तथा अन्य आडंबरों से मुक्त होना पड़ेगा। उनके शहादत को याद करते हुए आज उनकी शिक्षा और आदर्शों को अपनाने की आवश्यकता है। सामाजिक न्याय, आदिवासी संस्कृति एवं राष्ट्रीय आंदोलन में उनके अनूठे एवं विलक्षण योगदान के लिए न केवल आदिवासी जनजीवन बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति सदा बिरसा मुण्डा की ऋणी रहेगी।