बहरापन रोकने जीवनशैली को ठीक रखें

हमारे शरीर में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं हमारे कान। जीवनशैली ने हमारे शरीर के अन्य अंगों की तरह कानों को भी प्रभावित किया है। अधिक तेज स्वर में संगीत सुनने, ईयरफोन पर घंटों गाने सुनने और कहीं लाउडस्पीकर, डी जे आदि के पास से गुजरने के कारण कान की बाहरी परत क्षतिग्रस्त हो जाती है। इस कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है। कानों की समस्याएं युवाओं में अधिक देखी जा रही हैं। इनमें सबसे खतरनाक बीमारी है बहरापन।
तैरते समय रहें सावधान
स्विमिंग पूल में बालों को ही नहीं, कानों को भी नुकसान होता है। पूल में पानी को साफ रखने के लिए क्लोरीन का प्रयोग किया जाता है, जो कानों में चला जाता है। इससे कानों में दर्द होना या तरल पदार्थ बहने की समस्या हो सकती है। इससे बचने के लिए ईयर प्लग का इस्तेमाल करना जरूरी है।
शोर-शराबे से दूरी
मशीनों, फैक्ट्रियों और खासतौर पर ऑटोमोबाइल से निकलने वाले शोर के कारण वातावरण में ध्वनि प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। इस कारण सुनने की क्षमता कम हो रही है।
कान में संक्रमण के कारण
कान में संक्रमण की समस्या भी हो सकती है। कान में आसानी से तरल पदार्थ प्रवेश कर सकता है। कानों में संक्रमण के कारण खसरा आदि बीमारियां हो सकती हैं। इनसे सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। इसलिए जब भी कान में तरल पदार्थ चला जाये तो कानों को अच्छे से साफ जरूर करें।
चोट लगने के कारण
अगर कान में किसी तरह की चोट लग गई है तो इस कारण भी सुनने की क्षमता कम हो जाती है। वाहन चलाते समय कोई दुर्घटना होने से भी कान में अचानक तेज दर्द हो तो कान के पर्दे की जांच जरूरी हो जाती है।
सावधानी
कभी-कभी तो बहरापन इतना ज्यादा गंभीर हो जाता है कि रोगी को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ सकता है। सड़क पर चलते समय बहरेपन की वजह से ज्यादा हादसे होते हैं, क्योंकि गाड़ियों की आवाज ना सुनाई देने के कारण ऐसे व्यक्ति हासदे की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए समय रहते किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाएं।
क्या हैं उपाय
संक्रमण की वजह से सुनने की क्षमता में कमी आई है तो इसे दवा से ठीक किया जा सकता है।
अगर पर्दे को नुकसान हो गया है तो सर्जरी करानी पड़ती है। कई बार पर्दा क्षतिग्रस्त होने पर दवाओं से भी इलाज हो जाता है।
नसों में आई किसी कमी की वजह से सुनने की क्षमता में कमी आए तो उस नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती। इस कमी को पूरा करने के लिए हिर्यंरग एड का ही इस्तेमाल करना होता है। हिर्यंरग एड फौरन राहत देता है और समस्या को बढ़ने से भी रोकता है।
सुनने की क्षमता में कमी जन्मजात भी हो सकती है। इसलिए जन्म के समय ही बच्चे की सुनने की क्षमता की जांच होनी चाहिए। इससे सुनने की क्षमता को लेकर बच्चे का समय पर उपचार हो जाता है।
नियमित जांच
अगर कान की कोई समस्या नहीं है तो आंखों की तरह कानों की नियमित जांच की जरूरत नहीं होती।
कुछ डॉक्टर मानते हैं कि अगर आपकी उम्र 30 से 45 साल के बीच है तो दो साल में एक बार कानों की जांच करा लेनी चाहिए।
50 साल की उम्र के आसपास कान की नसें कमजोर होने की शिकायत हो सकती है। इसलिए 50 साल के बाद साल में एक बार कानों का चेकअप करा लें।

शेयर करें