ऑनलाइन फूड डिलीवरी कंपनियों और रेस्टोरेंट्स के बीच छूट का ही नहीं अन्य विवाद भी

नई दिल्ली । देश में ऑनलाइन खाना सप्लाई रपने वाली कंपनियों और रेस्टोरेंट्स के बीच विवाद का सिलसिला निरंतर बढ़ रहा है। रेस्टोरेंट्स आरोप लगा रहे हैं कि फूड एग्रीगेटर्स भारी छूट देने के अलावा उन पर कई ‘मुश्किल शर्तें’ लाद रहे हैं। जोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियां भी अपनी गलती मानकर मोटे डिस्काउंट के साथ अन्य ऑफर्स को वाजिब स्तर पर लाने को राजी हो गई हैं, लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। ई-कॉमर्स दिग्गज एमेजॉन भी फूड डिलीवरी मार्केट में उतरने वाली है। इससे ग्राहक बढ़ाने के लिए भारी छूट का खेल फिर से शुरू हो सकता है। ऑनलाइन फूड डिलीवरी इंडस्ट्री को हर महीने 500 से ज्यादा शहरों से करीब 8 करोड़ ऑर्डर मिलते हैं। यह कारोबार तकरीबन पांच साल पहले शुरू हुआ था। इस सिस्टम में फूड एग्रीगेटर्स तय कमीशन के बदले रेस्टोरेंट को ऑर्डर दिलवाते थे। रेस्टोरेंट को सिर्फ खाना बनाकर पैक करना होता था। उन्हें नियमित ग्राहकों के अलावा अतिरिक्त कमाई तो मिलती ही थी, उनके प्लेटफॉर्म का प्रचार भी होता था। लिहाजा, रेस्टोरेंट्स ने इस मॉडल को धड़ल्ले से अपनाया।
हालांकि, जब स्विगी, जोमैटो, फूडपांडा और उबरईट्स ने मार्केट शेयर बढ़ाने के लिए भारी छूट और मनमानी शर्तें लादने का खेल शुरू किया तो रेस्टोरेंट्स को अहसास हुआ कि यह उनके लिए फायदे का सौदा नहीं है। फूड एग्रीगेटर्स चाहते हैं कि रेस्टोरेंट्स छूट के बड़े हिस्से का बोझ खुद उठाएं। वे प्राइम या गोल्ड मेंबर की अतिरिक्त डिश या ड्रिंक का बोझ भी रेस्टोरेंट्स के सिर डालना चाहते हैं। रेस्टोरेंट्स के लिए यह घाटे का सौदा है क्योंकि फूड डिलीवरी कंपनियां मेंबरशिप से होने वाली आमदनी उनसे साझा नहीं करतीं। वहीं, रेस्टोरेंट्स किराया बढ़ने, कारोबारी सुस्ती और बाहर जाकर खाने वाले बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच अपने मुनाफे से समझौता नहीं करना चाहते। एग्रीगेटर्स यह भी चाहते हैं कि रेस्टोरेंट्स और कम समय में खाना तैयार करें। रेस्टोरेंट्स की शिकायत है कि कई ऐसे आइटम हैं, जिन्हें बनाने में ज्यादा वक्त लगता है।
लिहाजा, एग्रीगेटर्स का यह दबाव ज्यादती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर रेस्टोरेंट्स को एग्रीगेटर्स से इतनी शिकायतें हैं तो वे उनका प्लेटफॉर्म छोड़ क्यों नहीं देते? कई रेस्टोरेंट्स जोमैटो और स्विगी के प्लेटफॉर्म से हट चुके हैं। हालांकि, यह समस्या अब डिस्काउंट और शर्तों से आगे बढ़कर आस्तिव की लड़ाई बन गई है। दरअसल, फूड डिलीवरी कंपनियों ने रेस्टोरेंट्स को ऑर्डर तो खूब दिलाए, लेकिन साथ में ग्राहकों की खानपान की आदत को भी बदला। अब लोग खाना मंगाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। इससे पैसा और समय दोनों बचता है। फूड एग्रीगेटर्स को रेस्टोरेंट्स के साथ विवाद का पहले से अंदेशा था।

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