लकवा से ग्रस्त व्यक्ति अपनी एक या ज्यादा मांसपेशियों को हिलाने में असमर्थ हो जाता है।
मांसपेशियों में किसी प्रकार की समस्या या अन्य बाधा कभी लकवा का कारण नहीं बनती, बल्कि मस्तिष्क से अंगों में संदेश पहुंचाने वाली तंत्रिकाओं और रीढ़ की हड्डी प्रभावित होने कि स्थिति में लकवा हो जाता है। लकवा किसी एक मांसपेशी या समूह को प्रभावित कर सकता है या शरीर के बड़े क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है, यह सब उसके कारण पर निर्भर करता है।स्ट्रोक, सिर या मस्तिष्क में चोट, रीढ़ की हड्डी में चोट और विभिन्न स्कैलरिस आदि, लकवा के मुख्य कारणों में से एक होते हैं।
जब शरीर का कोई एक लिंब (भुजा और टाँगे) प्रभावित होता है तो उसको मोनोप्लेजिया कहा जाता है, जब शरीर के एक तरफ की एक भुजा और एक टांग प्रभावित हो जाए तो उस स्थिति को हेमिप्लेजिया कहते हैं। जब शरीर के निचले हिस्सों के लिंब प्रभावित हो जाएं तो उसे पैराप्लेजिया कहा जाता है और चारों भुजा और टाँग प्रभावित होने पर इसे टेट्राप्लेजिया या क्वॉड्रीप्लेजिया कहा जाता है। कई बार जब शरीर के किसी अंग की मांसपेशियां अपना काम करना बंद या कम कर देती हैं तो उस स्थिति को पल्सी के नाम से जाना जाता है। जैसे बेल्स पल्सी यह चेहरे की मांसपेशियों को प्रभावित करती है।
लकवा का निदान मरीज के लक्षण, शारीरिक परीक्षण और अन्य टेस्ट जैसे नसों का टेस्ट व स्कैन आदि के आधार पर किया जाता है।
अगर किसी व्यक्ति में लकवा स्थायी हो चुका है तो उसका ईलाज नहीं किया जा सकता, मगर कुछ मशीनी अपकरणों की मदद से मरीज के जीवन को जितना हो सके आसान बनाने की कोशिश की जाती है।
कुछ मामलों में, जब लकवा टाँग और भुजाओं को प्रभावित कर देता है, तब न्यूरोप्रोस्थेसिस उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। यह विद्युत धाराओं की मदद से मांसपेशियों को उत्तेजित करता है, जिससे मरीज लकवाग्रस्त अंगों से कुछ गतिविधि कर पाता है। हालांकि, ये उपकरण काफी महंगा है और हर लकवा ग्रस्त मामलों के लिए उपयुक्त भी नहीं होता।
दौड़-भाग भरी लाइफ स्टाइल के कारण मनुष्य अनचाहे ही न जाने कितनी बीमारियों को आमंत्रण दे देता है. इन्ही घातक बीमारियों में से एक है पक्षाघात, फालिज या लकवा. लकवा दिमाग का एक रोग है, जो दिमाग में ब्लड सर्कक्युलेशन ठीक तरीके से न होने या रीढ़ की हड्डी में किसी बीमारी या खराबी हो जाने के कारण होता है.
हमारा दिमाग हमारे पूरे शरीर को नर्वस-सिस्टम से नियंत्रित करता है। किसी बीमारी, चोट या सदमे के कारण जब दिमाग यह नहीं कर पाता है इस स्थिति को लकवा कहते हैं।
लकवा होने का कारण
दिमाग के किसी हिस्से में ब्लड सर्कक्युलेशन बंद होने से वह हिस्सा बेकार हो जाता है। ऐसे में दिमाग का वह भाग शरीर के कुछ हिस्सों को आदेश नहीं पहुंचा पाता है। ब्लड सर्कक्युलेशन धमनी के भीतर ब्लड जम जाने व धमनी के फटने से बंद हो जाता है। इसके अलावा मिरगी, हिस्टीरिया और अधिक टेंशन लेने से भी लकवे का खतरा होता है।
जिस अंग पर लकवा होने का खतरा होता है, उस अंग की मांसपेशी निष्क्रिय होने लगती हैं. मन में उत्साह की कमी, रक्तचाप बढ़ना, जिद करना; भूख, नींद कम होने के साथ ही किसी काम को करने में परेशानी होना और लगातार कब्ज रहना।
बचाव
जिन कारणों से यह खतरा रहता है उनको दूर करने का प्रयास करें। लकवा की आशंका होने पर हार्ड वर्क वाले काम बंद कर शारीरिक व मानसिक रूप से आराम करें मॉर्निंग व इवनिंग वॉक शुरू कर दें। कसरत, मालिश, मनोरंजन, प्राणायाम, ध्यान करें.
लकवे में क्या खाना खाएं
लकवा के मरीज के आहार में सेब, अंगूर और नाशपाती, दूध, दही, मक्खन, छाछ, लहसुन, परवल, पेठा, बैंगन, केले का फूल, करेला, जमीकंद, अदरक, पका आम, पका पपीता, कच्चा नारियल, सूखा मेवा, मेथी, बथुवा, प्याज, तुरई, लौकी, टिंडा, शलजम, अंजीर, गरम पानी, पुराना चावल, खजूर, मूंग की दाल शामिल करें। वहीं नमक नया चावल, गुड़, भैंस का दूध, उड़द, भिंडी, घुइयां, तरबूज तथा बर्फ को बाहर रखें।