महिलाओं के हित में कुछ अच्छी व कुछ बुरी खबरें आ रही है। अच्छी खबर यह है कि संसद में महिला सांसदो की संख्या बढ़ी हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का रास्ता साफ कर दिया है। अपने एक फैसले में देश की शीर्ष अदालत ने महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति विकासवादी प्रक्रिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी नागरिकों को अवसर की समानता, लैंगिक न्याय सेना में महिलाओं की भागीदारी का मार्गदर्शन करेगा। महिलाओं की शारीरिक विशेषताओं पर केंद्र के विचारों को कोर्ट ने खारिज किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र दृष्टिकोण और मानसिकता में बदलाव करें। सेना में सही मायने में समानता लानी होगी। केंद्र सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थाई कमीशन देने से इनकार स्टीरियोटाइप पूर्वाग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आज हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है।
इसी दौरान महिलाओं को शर्मसार करने वाली कुछ बातें भी सामने आई है। गुजरात के सूरत में महिला प्रशिक्षु क्लर्कों के साथ अभद्रता की घटना सामने आयी है। जिस से सभ्य माने जाने वाले समाज का सिर शर्म से झुक गया है। सूरत नगर निगम में प्रशिक्षु कल्र्कों की शारीरिक जांच के नाम पर उन्हें निर्वस्त्र कर घंटों कतार में खड़ा रहने के लिए मजबूर किया गया। इतना ही नहीं उस दौरान ना तो उनकी निजता का ख्याल रखा गया और ना ही उनके साथ संवेदनशीलता दिखाई गई। उनसे आपत्तिजनक सवाल किए गए। प्रशिक्षु कल्र्को को मेडिकल टेस्ट के लिए अस्पताल के प्रसूति विभाग में ले जाया गया। जहां उन्हें 10-10 के समूह में बांट कर सारे कपड़े उतारने को कहा गया। जिस कमरे में उन्हें निर्वस्त्र खड़ा करवाया गया उस कमरे का दरवाजा तक ठीक से बंद नहीं किया गया था। वहां उनकी प्राइवेसी तक का ख्याल नहीं रखा गया। जांच के दौरान महिला चिकित्सकों ने अविवाहित महिलाओं की भी गर्भावस्था से जुड़ी जांच की और उनसे आपत्तिजनक सवाल पूछे। जिससे उन्हें असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। घंटों तक उन्हें बिना कपड़ो के खड़े रहने के लिए मजबूर किया गया।
उससें पूर्व गुजरात में भुज शहर के श्री सहजानंद गल्र्स इंस्टीट्यूट से शर्मनाक मामला सामने आया था। वहां हॉस्टल में 68 लड़कियों के इनर वियर उतरवाए गए। कथित तौर पर ऐसा इसलिए किया गया जिससे यह पता लगाया जा सके कि वे मासिक धर्म से तो नहीं हैं। लड़कियों के इनर वियर उतरवाने का यह मामला सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनने से सरकार की नींद खुली व मामले को दबाने के लिये जांच कमेटी बना दी गयी है। जो अपनी जांच रिपोर्ट देने में महिनो लगा देगी तब तक लोग उस घटना को भुला चुके होंगे।
गत वर्ष महाराष्ट्र के बीड़ जिले में महिलाओं द्वारा पीरियड से बचने के लिए गर्भाशय निकलवाने के मामले सामने आए थे। बताया गया था कि महिलाएं माहवारी के कारण लगने वाले जुर्माने और काम में पडऩे वाले व्यवधान से बचने के लिए ऐसा कर रही थी। बीड़ जिले में गन्ने के खेतों में काम करने वाली 4605 महिलाओं के गर्भाशय निकाल दिए गए ताकि माहवारी के चलते उनके काम में ढि़लाई ना आए और उन्हें जुर्माना न भरना पड़े।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार तीसरे साल भी वृद्धि देखने को मिली है। इसके मुताबिक 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3 लाख 29 हजार 243 मामले दर्ज किए गए थे। 2016 में 3 लाख 38 हजार 954 मामले दर्ज किए गए थे। जबकि 2017 में 3 लाख 59 हजार 849 मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों के मुताबिक 2017 में भारत में 32,559 बलात्कार के मामले रिपोर्ट हुए थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, अधिकतम मामले उत्तर प्रदेश में 56 हजार 11 में दर्ज किए गए। उसके बाद महाराष्ट्र में 31 हजार 979 मामले दर्ज किए गए। वहीं पश्चिम बंगाल में 30 हजार 992, मध्य प्रदेश में 29 हजार 778, राजस्थान में 25 हजार 993 और असम में 23 हजार 82 मामले दर्ज किए गए। इन अपराधों में हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, एसिड हमले, महिलाओं के खिलाफ कू्ररता और अपहरण आदि शामिल है।
इसके इतर सत्रहवीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या बढक़र 78 हो गई जो अब तक की सबसे अधिक संख्या है। 2014 में जहां 62 महिला सांसद संसद पहुंची थी। हालांकि वृहद स्तर पर देखें तो यह संख्या अभी भी कम है क्योंकि यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आस-पास भी नहीं है। यदि दुनिया भर के आंकड़ें देखें तो भारत में महिला सांसदों का औसत सबसे कम है। ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में जहां पूरे संसद की संख्या का केवल 14 फीसदी महिला सांसद है। वहीं रवांडा में 61 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 43 फीसदी, ब्रिटेन में 32 फीसदी, अमेरिका में 24 फीसदी, बांग्लादेश में 21 फीसदी महिला सांसद है।
देश में ओडीशा की बीजेडी एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने टिकट बंटवारे में 33 फीसदी सीट महिलाओं को दिया था। यानि 7 महिला उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। उसी तरह पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस ने भी 42 में से 17 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था। जबकि बीजेपी ने 437 में से 53 महिलाओं को व कांग्रेस ने 423 में से 54 महिलाओं को टिकट दिया था। वर्ष 1962 से अभी तक देश में करीबन 600 महिलाएं सांसद के रूप में चुनी गई हैं। मगर देश के 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 48.4 फीसदी संसदीय क्षेत्रों ने 1962 के बाद से अब तक किसी महिला को सांसद के रूप में नहीं चुना है।
भारत में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है मगर वर्तमान में यह बाते सिर्फ किताबों तक सीमित रह गयी हैं। आये दिन महिलाओं पर अत्याचार की घटनायें होना आम बात हो गयी है। दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की शिकार हुयी निर्भया के गुनहगारों को गत आठ वर्षों बाद भी अभी तक फांसी नहीं दी जा सकी है। जबकि निर्भया आंदोलन का फायदा उठाकर नेता बने लोग सत्ता का लाभ उठा रहें हैं। कानूनी पेचीदगियों का लाभ उठाकर निर्भया के गुनहगारों को फांसी देने की तिथी बार- बार आगे खिसकायी जा रही हैं। इससे अपराधियों के हौसलें बढ़ते हैं।
संसद में महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी होना एक शुभ संकेत है। मगर आज भी संसद में महिलाओं के आरक्षण की बात पर सभी राजनीतिक दल पीछे खिसकने लगते हैं। कोई भी पार्टी महिला आरक्षण विधेयक को आगे बढ़ाना नहीं चाहती है। कई राजनीतिक दलों की मुखिया महिलायें हैं मगर महिलाओं को आरक्षण दिलवाने की बात पर वो भी चुप्पी साधकर सरकार की हां में हां मिलाने लगती हैं। इसी कारण संसद में महिलाओं को आरक्षण देने का मामला वर्षो से लम्बित है।
पंचायती राज व स्वायत शासन संस्थानो में महिलाओं को कुछ आरक्षण देकर सभी राजनीतिक दल व प्रदेशों की सरकारें अपना कर्तव्य पूरा कर लेती हैं। देश में महिलायें हर क्षेत्र में पुरूषों के कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं। गत वर्षों में तो महिला खिलाडिय़ों ने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पुरूषों से अच्छा प्रदर्शन कर देश का दुनिया भर में मान बढ़ाया हैं। इसके उपरान्त भी महिलाओं को समानता के लिये संघर्ष करना पड़ता है जो देश व समाज के लिये अच्छी बात नहीं हैं।