उमरिया। सुरक्षित पेयजल विकास कार्यों के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है,
प्रदूषित जल के इस्तेमाल से पैदा होने वाली बीमारियों ने अपना दायरा इतना बढ़ा लिया है कि शायद ही देश का कोई कोना इनकी गिरफ्त से बचा हो। देखा जाएँ तो प्राकृतिक जलस्रोत भी प्रदूषण की गिरफ्त में हैं। अतः प्रदूषित जल के इस्तेमाल से पैदा होने वाली बीमारियों से लोगों को बचाने के लिये बायो सैंड फ़िल्टर एक कारगर तरीका हो सकता है । खासकर कम आय वाले परिवारों के लिए यह और भी जरुरी हो जाता है इसमें अगर आकाशकोट की बात कहे तो फिर बहुत ही जरुरी यह होता है कि वहां कोई पानी की बात व समस्या का समाधान लेकर आय | ऐसे में फ्रेंडली वाटर फॉर वर्ड व राष्ट्रीय युवा संगठन के संयुक्त प्रयास से पांच दिवसीय बायो सैंड वाटर फ़िल्टर का प्रशिक्षण आदिवासी सामुदाय के 20 साथियों के साथ आकाशकोट के जंगेला ग्राम में किया गया | जिसके समापन में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राम सिंह, विनय विश्वकर्मा व अजमत द्वारा प्रमाण पत्र भी वितरण किया गया |
बायो सैंड फ़िल्टर क्या है
स्लो सैंड फिल्टर के निर्माण में रेत, छोटे पत्थर व बड़े पत्थर के तीन लेयर बनाए जाते हैं। ये ऊँचाई में लगभग मीटर चौड़ाई में एक फिट बाई 1 फिट और आकार में चौकोर होते हैं। पानी जब इस फिल्टर के तीनों लेयर से होकर निकलता है तो एकदम शुद्ध हो जाता है। इस विधि को नेशनल एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, who व उनिसेफ़ ने भी प्रमाणित किया है। ऐसा भी कह सकते हैं कि स्वच्छ पानी को प्रभावी ढंग से उपलब्ध कराने के लिये वर्तमान समय में यह एक नवाचार है । इस फिल्टर से प्रतिमिनट 400 mlएमएल पानी निकलता है इसका वजन 1.5 कोंटल का होता है |
वक्तव
सामाजिक कार्यकर्ता विनय विश्वकर्मा ने कहा कि ग्रामीण छेत्रो में बीमारी बड़ी नहीं बहुत छोटी-छोटी होती है वो भी सिर्फ इस कारण की सफाई से पानी, खाना व घर नहीं रहता अगर हम इन 3 चीजों पर अपना ध्यान दें तो हम गाँव से बीमारी को छूमंतर कर सकते है और मुझे उम्मीद है कि यह इस फ़िल्टर से पानी तो आप सब साफ करेंगे साथ ही अपना भोजन व घर के आस पास की भी सफाई करेंगे | रायुसा के प्रदेश संयोजक व ट्रेनर अजमत भाई बताते है कि अभी वर्तमान में शहडोल संभाग के अन्दर लगभग 69 फ़िल्टर 86 परिवारों को शुद्ध पेयजल बायो सैंड फिल्टर के माध्यम से उपलब्ध हो रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि शुद्ध पेयजल वही है जिसमें पर्याप्त मात्रा में मिनरल उपलब्ध होते हैं । वे यह भी बताते हैं कि कृत्रिम फिल्टर पानी में उपस्थित मिनरल्स को बाहर निकाल देते हैं। इस तरह बायो सैंड फिल्टर का इस्तेमाल आज भी प्रासांगिक है क्योंकि इससे मिले पानी में मिनरल्स की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में होती है।
साफ पानी कुपोषण से बचाओं
पानी को साफ करने के लिये इस परम्परागत तकनीक का इस्तेमाल देश व विदेश के कई हिस्सों में हो रहा है । पुरी देश में पानी की समस्या एक बड़ी चुनौती बन कर आ रही है और उसमे जिले के आकाशकोट में लगातार काम करते हुए साफ़ पानी न मिलने से डायरिया, रोटावायरस जैसे बिमारियों से बच्चे व बड़े में लगातार देखा गया है जिसके कारण बच्चो में कमजोरी भी आ रही है और बच्चे के कुपोषण का एक बड़ा कारण साफ़ पानी न मिलना भी देखा गया है | यह प्रशिक्षण कर 20 साथियों को तैयार कर रहे है जो अपने गाँव व आस पास फ़िल्टर बनाने व दूषित पानी से होने वाली बिमारियों पर समुदाय को जागरूक करेंगे व उन्हें फ़िल्टर उपलब्ध कराएँगे | जिससे हम समुदाय आधारित जल उपचार की एक व्यवस्था बना सकेंगे |
आगे की प्लानिग
आगे की हमारी योजना है कि स्थानीय समुदाय व प्रशासन के सहयोग से आकाशकोट के दो दर्जन गाँवों में बायो सैंड फिल्टर टैंक का निर्माण कराया जाए । आकाशकोट में लगभग 18 गाँव ऐसे है जहाँ में हैजा, डायरिया जैसी संक्रामक बीमारी से लोगों की जान तक चली जाती है । बायो सैंड फिल्टर ही इस समस्या के समाधान का एकमात्र उपाय है । जिससे ग्रामीण शुद्ध पेयजल प्राप्त कर सकेंगे । जो एक प्रभावी घरेलू जल उपचार के रूप लाभदायक है | इस 5 दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान जंगेला, करौंदा, लालपुर व चंदनिया के 20 प्रशिक्षार्थी के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता संपत नामदेव व फूल बाई शामिल हुयें |
…/राजेश/3.25/ 9 मार्च 2020
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