नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक संपत्ति विवाद के मामले में कहा कि अदालतें नियमित रूप से लोगों के डीएनए टेस्ट का आदेश ना दें। न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि जब वादी खुद को डीएनए परीक्षण के अधीन करने के लिए तैयार नहीं है, तो उसे इससे गुजरने के लिए मजबूर करना उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ उन मामलों में ही ऐसा करना चाहिए जहां इस तरह के टेस्ट की अत्यधिक आवश्यकता हो।
जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि अदालतों के विवेक का इस्तेमाल पक्षों के हितों को संतुलित करने के बाद किया जाना चाहिए। और ये तय किया जाना चाहिए कि मामले में न्याय करने के लिए डीएनए टेस्ट की आवश्यकता है या नहीं।
पीठ ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में जहां रिश्ते को साबित करने या विवाद करने के लिए अन्य सबूत उपलब्ध हैं, तो अदालत को आमतौर पर डीएनए टेस्ट का आदेश देने से बचना चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस तरह के टेस्ट किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार को प्रभावित करते हैं। इसके बड़े सामाजिक परिणाम भी हो सकते हैं। संबंधित व्यक्ति के निजता के अधिकार के संरक्षण को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
मौजूदा मामले में कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने अपने मामले को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत रिकॉर्ड पर दिए हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा होने पर उसे डीएनए टेस्ट के लिए मजबूर करना उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा। संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर एक मुकदमे में ये फैसला आया है। दरअसल अपीलकर्ता ने दिवंगत दंपति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर दावा किया था। हालांकि, दंपति की तीन बेटियों ने इस बात से इनकार किया कि अपीलकर्ता मृतकों का बेटा था और उसने संपत्ति पर विशेष दावा किया।
निचली अदालत के समक्ष बेटियों ने उसका डीएनए टेस्ट कराने की अर्जी दी। अपीलार्थी ने इस आवेदन का विरोध करते हुए दावा किया कि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। उसने यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत पेश किए कि वह दिवंगत दंपति का बेटा है। ट्रायल कोर्ट ने डीएनए टेस्ट का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। प्रतिवादियों ने हाईकोर्ट में आदेश के खिलाफ अपील की। उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए विपरीत दृष्टिकोण रखा कि अपीलकर्ता को प्रतिवादियों द्वारा सुझाए गए डीएनए टेस्ट से नहीं हिचकिचाना चाहिए और टेस्ट कराना चाहिए। इसके बाद पीड़ित याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।