पुंछ में आतंकियों की ही गोली से मारा गया जिया मुस्तफा

श्रीनगर. जम्मू और कश्मीर में रविवार को तड़के पुंछ में दो पुलिसकर्मी और एक आर्मी अधिकारी आतंकियों के साथ मुठभेड़ में घायल हो गए. पिछले दो हफ्ते से पुंछ जिले की पहाड़ियों में स्थित सघन जंगलों में आतंकियों के साथ मुठभेड़ चल रही है. इस एनकाउंटर में 11 अक्टूबर से 14 अक्टूबर के बीच आतंकियों से लोहा लेते हुए 9 सैन्य कर्मी शहीद हो गए हैं. इधर जम्मू कश्मीर पुलिस ने एक बयान में कहा है कि ‘पुंछ मुठभेड़ के दौरान पाकिस्तानी लश्कर आतंकी जिया मुस्तफा को आतंकियों का पता लगाने के लिए भाटा दूरियां ले जाया गया था…’
सर्च ऑपरेशन के दौरान आर्मी और पुलिस की संयुक्त टीम पर आतंकियों ने दोबारा से फायरिंग शुरू कर दी. इसी फायरिंग में दो पुलिसकर्मी और आर्मी के एक अधिकारी घायल हो गए. इसी फायरिंग में आतंकी जिया मुस्तफा भी घायल हो गया और भारी फायरिंग के चलते उसकी लाश को घटनास्थल से तुरंत निकाला नहीं जा सका.
बाद में, पुलिस ने पुष्टि करते हुए कहा कि मुस्तफा की बॉडी को एनकाउंटर साइट से निकाल लिया गया. शनिवार को मुस्तफा को पुलिस 10 दिनों के रिमांड पर कोट बलवल जेल से मेंढर ले गई. जिया मुस्तफा कोट बलवल जेल में बंद था, जहां से वह पाकिस्तान स्थित लश्कर के नेताओं के साथ कथित रूप से संपर्क में था. मुस्तफा को 2003 में जम्मू कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार किया था और उसी साल मार्च में हुए कश्मीरी पंडितों के नदीमर्ग नरसंहार का मास्टरमाइंड माना जाता था.
2003 में श्रीनगर में जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन डीजीपी एके सूरी ने 10 अप्रैल को मुस्तफा की गिरफ्तारी का ऐलान किया था, मुस्तफा की प्रेस कॉन्फ्रेंस में परेड कराई गई थी, और उसकी गिरफ्तारी को बड़ी कामयाबी बताया गया था. सूरी ने उस समय मुस्तफा को लश्कर का डिस्ट्रिक्ट कमांडर बताया था, जो 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या में शामिल था. ये कश्मीरी पंडित पुलवामा जिले के नदीमर्ग गांव में अपने घरों में ठहरे हुए थे, जब उन्हें मारा गया.पुलिस के तत्कालीन मुखिया ने कहा था कि मुस्तफा के पास से एक AK-47 राइफल, गोला-बारूद, वायरलेस सेट और अन्य दस्तावेज भी बरामद किए गए थे. पुलिस ने कहा था कि मुस्तफा को विक्टर सहित तमाम नामों से जाना जाता था. रिपोर्ट के मुताबिक मुस्तफा ने पुलिस जांचकर्ताओं को बताया था कि उसे पाकिस्तान स्थित लश्कर ए तैयबा के नेताओं ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को अंजाम देने के लिए कहा था.

नदीमर्ग में कश्मीरी पंडितों का नरसंहार
नदीमर्ग नरसंहार उस समय हुआ था, जब मिलिटेंसी के एक दशक बाद जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा स्थितियां बेहतर होनी शुरू हो गई थीं, पाकिस्तान में जनरल परवेज मुशर्रफ का दावा था कि लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद की नकेल कस दी गई है. पर्दे के पीछे चली बातचीत में भारत और पाकिस्तान सीजफायर की ओर बढ़ रहे थे और 2003 के अंत में इस पर सहमति भी बनी.1990 में घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के समय ज्यादातर लोग नदीमर्ग छोड़ गए थे. लेकिन 50 के करीब लोगों ने घाटी में रूकने का फैसला किया था. 23 मार्च 2003 को सेना की ड्रेस में आए आतंकियों ने 11 आदमियों, 11 औरतों और 2 बच्चों को उनके घरों के बाहर खड़ा करके गोली मार दी. इस घटना के बाद बाकी बचे कश्मीरी पंडित भी घाटी छोड़कर चले गए. रविवार को हुई घटना से इस बात की पुष्टि हो गई है कि आतंकी पुंछ के भाटा दूरियां इलाके में स्थित जंगलों में अभी भी छिपे हुए हैं. लेकिन, सुरक्षा एजेंसियों का ये कहना है कि कोट बलवल जेल में बंद मुस्तफा अपने पाकिस्तानी आकाओं के साथ संपर्क में था, जेलों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कई सवाल खड़े करता है.

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