राजनांदगांव। शासकीय कमलादेवी राठी स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय,राजनांदगांव के हिन्दी विभाग में संस्था प्रमुख डॉ. सुमन सिंह बघेल के कुशल मार्गदर्शन में विशेष व्याख्यान का आयोजन डॉ. कोमल सिंह सार्वा, प्राध्यापक हिन्दी, (पूर्व प्राचार्य) शासकीय दानवीर तुलाराम महाविद्यालय उतई द्वारा हिन्दी साहित्य का इतिहास विषय पर डॉ. सार्वा ने अपने व्याख्यान में काल विभाजन के बारे में बताते हुए कहा कि जब तक हम किसी युग की प्रवृत्ति को, परिस्थिति को नहीं जानेंगे तब तक हम उस युग के साहित्यकार का सम्यक मूल्यांकन नहीं कर पायेंगे। जिस प्रकार वस्तु के समग्र रूप का दर्शन करने के लिए भी उसके अंगों का ही निरीक्षण करना पड़ता है, उसकी उसी प्रकार साहित्य की अखण्ड परंपरा का अध्ययन करने के लिए काल-विभाजन की आवश्यकता है। काल विभाजन का आधार समान प्रवृत्ति एवं प्रकृति होती है तथा युगों का नामकरण यथा संभव मूल साहित्य-चेतना को आधार मानकर साहित्यिक प्रवृत्ति के अनुसार किया जाता है युगों का सीमांकन मूल प्रवृत्तियों के आरम्भ एवं अवसान के अनुसार माना जाता है। आचार्य शुक्ल का इतिहास हिन्दी के समस्त इतिहासों का आधार है। अतः सबसे पहले उनके द्वारा किए गए काल विभाजन का परिचय पाना आवश्यक है।
वीरगाथा काल-इसके अंतर्गत उन्होंने अपभ्रंश रचनाएं, देशभाषा काव्य (वीर गाथाएं) एवं भूतकाल काव्य रखा है।
मध्यकाल-पूर्व मध्यकाल-भक्ति काल इसके दो प्रमुख वर्ग किए गए है। 1. निर्गुण धारा 2. सगुण धारा, उत्तर मध्यकाल-रीतिकाल, आधुनिक काल-आचार्य शुक्ल के तीनों काल खंड इतिहासकारों ने स्वीकार किए हैं।
इसके पश्चात् विभागाध्यक्ष डॉ. बृजबाला उइके ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में डॉ. एमएल साव, प्राध्यापक, अर्थशास्त्र एवं श्रीमती कामिनी देवांगन, अतिथि शिक्षक विशेष रूप से उपस्थित रहे।