जब भी तेज ट्रांसपोर्ट की बात होती है तो लोग हवाई जहाज का सहारा लेते हैं या फिर बुलेट ट्रेन को भी इसका ऑप्शन माना जाता है. कहा जाता है कि इन दोनों ट्रांसपोर्ट मोड से काफी कम समय में लंबी दूरी की यात्रा तय की जा सकती है. लेकिन, अब ऐसे सिस्टम पर काम चल रहा है, जिससे हवाई जहाज और बुलेट ट्रेन से भी काफी कम समय में यात्रा की जा सकती है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे हो सकता है और फिर उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड कितनी होगी कि वो बुलेट ट्रेन से भी दोगुना स्पीड से चलेगी.
तो जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो सिस्टम क्या है और उससे किस तरह से तेज यात्रा का सपना साकार हो सकता है. साथ ही जानते हैं उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड के बारे में, जिससे सिर्फ कुछ मिनट में कई राज्य पार किए जा सकते हैं. क्या है ये तकनीक? यह खास तरह की तकनीक है, जो दिखने में ट्रेन की तरह है, लेकिन ट्रेन से काफी अलग है. इस खास सिस्टम को हाइपरलूप कहा जाता है, जिस पर अभी कई विकसित कंपनियां काम कर रही हैं और माना जा रहा है यह जल्द ही लॉन्च हो सकती है. अभी इस पर सुरक्षा को लेकर काम चल रहा है. हाइपरलूप में ट्रेन के टायर की तरह टायर नहीं होते हैं, बल्कि ये ट्यूब सिस्टम पर काम करता है. साथ ही इसमें ट्रेन के डिब्बों की तरह छोटे-छोटे कैप्सूल बनाए गए हैं और उनसे यात्रा करवाई जाती है.
ये जमीन की सतह पर नहीं, बल्कि ऊपर हैंगिंग स्टाइल में काम करता है और जमीन के सतह के ऊपर कैप्सूल ट्रैवल करते हैं. जिसके लिए एक खास तरह की एक सुरंग बनाई जाती है. अगर इसकी स्पीड की बात करें तो इससे 1200 किलोमीटर तक का सफर कुछ ही घंटो में पूरा किया जा सकता है. हाइपरलूप किस तरह अलग है? हाइपरलूप और नॉर्मल रेल में काफी अंतर होता है. इस सिस्टम में यात्रियों को ले जाने वाले पॉड ट्यूब या सुरंगों के माध्यम से यात्रा करते हैं, जिससे घर्षण को कम करने के लिए अधिकांश हवा को हटा दिया जाता है. इससे कैप्सूल की स्पीड काफी तेज हो जाती है और इससे कुछ ही मिनटों में कई मील की यात्रा आसानी से हो जाती है. वहीं, इसमें ट्रेन या कार की तरह पहियों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि पॉड्स को एयर स्की पर तैरने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
क्या है फायदे और नुकसान? हाइपरलूप ट्रेन या कार यात्रा की तुलना में सस्ता और तेज हो सकता है और हवाई यात्रा की तुलना में सस्ता और कम प्रदूषणकारी हो सकता है. उनका दावा है कि यह पारंपरिक हाई-स्पीड रेल की तुलना में तेज़ और सस्ता भी है, इसलिए हाइपरलूप का उपयोग ग्रिडलॉक सड़कों से दबाव कम करने, शहरों के बीच यात्रा को आसान बनाने और संभावित रूप से प्रमुख आर्थिक लाभों को अनलॉक करने के लिए किया जा सकता है. हालांकि, इसके विपरीत तर्क ये है कि अभी इसमें सुरक्षा को लेकर काफी काम किया जाना बाकी है. दरअसल, इसमें थोड़ी सी भी चूक होती है तो कई लोगों की जान जा सकती है. इसकी स्पीड के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना जरूरी है.
क्या हैं खास बातें? इस पर काम कर रही कंपनी स्विसपॉड का कहना है कि यात्रियों या सामान को बिजली की रफ्तार से पहुंचा सकेगा. कंपनी के मुताबिक जिनेवा से ज्यूरिख की करीब 277 किलोमीटर की दूरी महज 17 मिनट में तय हो सकती है. इसी तरह न्यूयॉर्क सिटी से वॉशिंगटन डीसी की दूरी सिर्फ 30 मिनट में तय हो जाएगी. कंपनी के सीईओ डेनिस ट्यूडोर का कहना है कि स्विसपॉड की योजना अगले 4 से 5 साल में हाइपरलूप बाजार में आ जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि अगले नौ महीने में मिनी टेस्ट साइट पर काम करके हमें यह पता चल जाएगा कि तकनीक को कैसे इस्तेमाल करना है.
जब भी तेज ट्रांसपोर्ट की बात होती है तो लोग हवाई जहाज का सहारा लेते हैं या फिर बुलेट ट्रेन को भी इसका ऑप्शन माना जाता है. कहा जाता है कि इन दोनों ट्रांसपोर्ट मोड से काफी कम समय में लंबी दूरी की यात्रा तय की जा सकती है. लेकिन, अब ऐसे सिस्टम पर काम चल रहा है, जिससे हवाई जहाज और बुलेट ट्रेन से भी काफी कम समय में यात्रा की जा सकती है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे हो सकता है और फिर उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड कितनी होगी कि वो बुलेट ट्रेन से भी दोगुना स्पीड से चलेगी.
तो जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो सिस्टम क्या है और उससे किस तरह से तेज यात्रा का सपना साकार हो सकता है. साथ ही जानते हैं उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड के बारे में, जिससे सिर्फ कुछ मिनट में कई राज्य पार किए जा सकते हैं. क्या है ये तकनीक? यह खास तरह की तकनीक है, जो दिखने में ट्रेन की तरह है, लेकिन ट्रेन से काफी अलग है. इस खास सिस्टम को हाइपरलूप कहा जाता है, जिस पर अभी कई विकसित कंपनियां काम कर रही हैं और माना जा रहा है यह जल्द ही लॉन्च हो सकती है. अभी इस पर सुरक्षा को लेकर काम चल रहा है. हाइपरलूप में ट्रेन के टायर की तरह टायर नहीं होते हैं, बल्कि ये ट्यूब सिस्टम पर काम करता है. साथ ही इसमें ट्रेन के डिब्बों की तरह छोटे-छोटे कैप्सूल बनाए गए हैं और उनसे यात्रा करवाई जाती है.
ये जमीन की सतह पर नहीं, बल्कि ऊपर हैंगिंग स्टाइल में काम करता है और जमीन के सतह के ऊपर कैप्सूल ट्रैवल करते हैं. जिसके लिए एक खास तरह की एक सुरंग बनाई जाती है. अगर इसकी स्पीड की बात करें तो इससे 1200 किलोमीटर तक का सफर कुछ ही घंटो में पूरा किया जा सकता है. हाइपरलूप किस तरह अलग है? हाइपरलूप और नॉर्मल रेल में काफी अंतर होता है. इस सिस्टम में यात्रियों को ले जाने वाले पॉड ट्यूब या सुरंगों के माध्यम से यात्रा करते हैं, जिससे घर्षण को कम करने के लिए अधिकांश हवा को हटा दिया जाता है. इससे कैप्सूल की स्पीड काफी तेज हो जाती है और इससे कुछ ही मिनटों में कई मील की यात्रा आसानी से हो जाती है. वहीं, इसमें ट्रेन या कार की तरह पहियों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि पॉड्स को एयर स्की पर तैरने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
क्या है फायदे और नुकसान? हाइपरलूप ट्रेन या कार यात्रा की तुलना में सस्ता और तेज हो सकता है और हवाई यात्रा की तुलना में सस्ता और कम प्रदूषणकारी हो सकता है. उनका दावा है कि यह पारंपरिक हाई-स्पीड रेल की तुलना में तेज़ और सस्ता भी है, इसलिए हाइपरलूप का उपयोग ग्रिडलॉक सड़कों से दबाव कम करने, शहरों के बीच यात्रा को आसान बनाने और संभावित रूप से प्रमुख आर्थिक लाभों को अनलॉक करने के लिए किया जा सकता है. हालांकि, इसके विपरीत तर्क ये है कि अभी इसमें सुरक्षा को लेकर काफी काम किया जाना बाकी है. दरअसल, इसमें थोड़ी सी भी चूक होती है तो कई लोगों की जान जा सकती है. इसकी स्पीड के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना जरूरी है.
क्या हैं खास बातें? इस पर काम कर रही कंपनी स्विसपॉड का कहना है कि यात्रियों या सामान को बिजली की रफ्तार से पहुंचा सकेगा. कंपनी के मुताबिक जिनेवा से ज्यूरिख की करीब 277 किलोमीटर की दूरी महज 17 मिनट में तय हो सकती है. इसी तरह न्यूयॉर्क सिटी से वॉशिंगटन डीसी की दूरी सिर्फ 30 मिनट में तय हो जाएगी. कंपनी के सीईओ डेनिस ट्यूडोर का कहना है कि स्विसपॉड की योजना अगले 4 से 5 साल में हाइपरलूप बाजार में आ जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि अगले नौ महीने में मिनी टेस्ट साइट पर काम करके हमें यह पता चल जाएगा कि तकनीक को कैसे इस्तेमाल करना है.
जब भी तेज ट्रांसपोर्ट की बात होती है तो लोग हवाई जहाज का सहारा लेते हैं या फिर बुलेट ट्रेन को भी इसका ऑप्शन माना जाता है. कहा जाता है कि इन दोनों ट्रांसपोर्ट मोड से काफी कम समय में लंबी दूरी की यात्रा तय की जा सकती है. लेकिन, अब ऐसे सिस्टम पर काम चल रहा है, जिससे हवाई जहाज और बुलेट ट्रेन से भी काफी कम समय में यात्रा की जा सकती है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे हो सकता है और फिर उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड कितनी होगी कि वो बुलेट ट्रेन से भी दोगुना स्पीड से चलेगी.
तो जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो सिस्टम क्या है और उससे किस तरह से तेज यात्रा का सपना साकार हो सकता है. साथ ही जानते हैं उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड के बारे में, जिससे सिर्फ कुछ मिनट में कई राज्य पार किए जा सकते हैं. क्या है ये तकनीक? यह खास तरह की तकनीक है, जो दिखने में ट्रेन की तरह है, लेकिन ट्रेन से काफी अलग है. इस खास सिस्टम को हाइपरलूप कहा जाता है, जिस पर अभी कई विकसित कंपनियां काम कर रही हैं और माना जा रहा है यह जल्द ही लॉन्च हो सकती है. अभी इस पर सुरक्षा को लेकर काम चल रहा है. हाइपरलूप में ट्रेन के टायर की तरह टायर नहीं होते हैं, बल्कि ये ट्यूब सिस्टम पर काम करता है. साथ ही इसमें ट्रेन के डिब्बों की तरह छोटे-छोटे कैप्सूल बनाए गए हैं और उनसे यात्रा करवाई जाती है.
ये जमीन की सतह पर नहीं, बल्कि ऊपर हैंगिंग स्टाइल में काम करता है और जमीन के सतह के ऊपर कैप्सूल ट्रैवल करते हैं. जिसके लिए एक खास तरह की एक सुरंग बनाई जाती है. अगर इसकी स्पीड की बात करें तो इससे 1200 किलोमीटर तक का सफर कुछ ही घंटो में पूरा किया जा सकता है. हाइपरलूप किस तरह अलग है? हाइपरलूप और नॉर्मल रेल में काफी अंतर होता है. इस सिस्टम में यात्रियों को ले जाने वाले पॉड ट्यूब या सुरंगों के माध्यम से यात्रा करते हैं, जिससे घर्षण को कम करने के लिए अधिकांश हवा को हटा दिया जाता है. इससे कैप्सूल की स्पीड काफी तेज हो जाती है और इससे कुछ ही मिनटों में कई मील की यात्रा आसानी से हो जाती है. वहीं, इसमें ट्रेन या कार की तरह पहियों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि पॉड्स को एयर स्की पर तैरने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
क्या है फायदे और नुकसान? हाइपरलूप ट्रेन या कार यात्रा की तुलना में सस्ता और तेज हो सकता है और हवाई यात्रा की तुलना में सस्ता और कम प्रदूषणकारी हो सकता है. उनका दावा है कि यह पारंपरिक हाई-स्पीड रेल की तुलना में तेज़ और सस्ता भी है, इसलिए हाइपरलूप का उपयोग ग्रिडलॉक सड़कों से दबाव कम करने, शहरों के बीच यात्रा को आसान बनाने और संभावित रूप से प्रमुख आर्थिक लाभों को अनलॉक करने के लिए किया जा सकता है. हालांकि, इसके विपरीत तर्क ये है कि अभी इसमें सुरक्षा को लेकर काफी काम किया जाना बाकी है. दरअसल, इसमें थोड़ी सी भी चूक होती है तो कई लोगों की जान जा सकती है. इसकी स्पीड के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना जरूरी है.
क्या हैं खास बातें? इस पर काम कर रही कंपनी स्विसपॉड का कहना है कि यात्रियों या सामान को बिजली की रफ्तार से पहुंचा सकेगा. कंपनी के मुताबिक जिनेवा से ज्यूरिख की करीब 277 किलोमीटर की दूरी महज 17 मिनट में तय हो सकती है. इसी तरह न्यूयॉर्क सिटी से वॉशिंगटन डीसी की दूरी सिर्फ 30 मिनट में तय हो जाएगी. कंपनी के सीईओ डेनिस ट्यूडोर का कहना है कि स्विसपॉड की योजना अगले 4 से 5 साल में हाइपरलूप बाजार में आ जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि अगले नौ महीने में मिनी टेस्ट साइट पर काम करके हमें यह पता चल जाएगा कि तकनीक को कैसे इस्तेमाल करना है.
जब भी तेज ट्रांसपोर्ट की बात होती है तो लोग हवाई जहाज का सहारा लेते हैं या फिर बुलेट ट्रेन को भी इसका ऑप्शन माना जाता है. कहा जाता है कि इन दोनों ट्रांसपोर्ट मोड से काफी कम समय में लंबी दूरी की यात्रा तय की जा सकती है. लेकिन, अब ऐसे सिस्टम पर काम चल रहा है, जिससे हवाई जहाज और बुलेट ट्रेन से भी काफी कम समय में यात्रा की जा सकती है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे हो सकता है और फिर उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड कितनी होगी कि वो बुलेट ट्रेन से भी दोगुना स्पीड से चलेगी.
तो जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो सिस्टम क्या है और उससे किस तरह से तेज यात्रा का सपना साकार हो सकता है. साथ ही जानते हैं उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड के बारे में, जिससे सिर्फ कुछ मिनट में कई राज्य पार किए जा सकते हैं. क्या है ये तकनीक? यह खास तरह की तकनीक है, जो दिखने में ट्रेन की तरह है, लेकिन ट्रेन से काफी अलग है. इस खास सिस्टम को हाइपरलूप कहा जाता है, जिस पर अभी कई विकसित कंपनियां काम कर रही हैं और माना जा रहा है यह जल्द ही लॉन्च हो सकती है. अभी इस पर सुरक्षा को लेकर काम चल रहा है. हाइपरलूप में ट्रेन के टायर की तरह टायर नहीं होते हैं, बल्कि ये ट्यूब सिस्टम पर काम करता है. साथ ही इसमें ट्रेन के डिब्बों की तरह छोटे-छोटे कैप्सूल बनाए गए हैं और उनसे यात्रा करवाई जाती है.
ये जमीन की सतह पर नहीं, बल्कि ऊपर हैंगिंग स्टाइल में काम करता है और जमीन के सतह के ऊपर कैप्सूल ट्रैवल करते हैं. जिसके लिए एक खास तरह की एक सुरंग बनाई जाती है. अगर इसकी स्पीड की बात करें तो इससे 1200 किलोमीटर तक का सफर कुछ ही घंटो में पूरा किया जा सकता है. हाइपरलूप किस तरह अलग है? हाइपरलूप और नॉर्मल रेल में काफी अंतर होता है. इस सिस्टम में यात्रियों को ले जाने वाले पॉड ट्यूब या सुरंगों के माध्यम से यात्रा करते हैं, जिससे घर्षण को कम करने के लिए अधिकांश हवा को हटा दिया जाता है. इससे कैप्सूल की स्पीड काफी तेज हो जाती है और इससे कुछ ही मिनटों में कई मील की यात्रा आसानी से हो जाती है. वहीं, इसमें ट्रेन या कार की तरह पहियों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि पॉड्स को एयर स्की पर तैरने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
क्या है फायदे और नुकसान? हाइपरलूप ट्रेन या कार यात्रा की तुलना में सस्ता और तेज हो सकता है और हवाई यात्रा की तुलना में सस्ता और कम प्रदूषणकारी हो सकता है. उनका दावा है कि यह पारंपरिक हाई-स्पीड रेल की तुलना में तेज़ और सस्ता भी है, इसलिए हाइपरलूप का उपयोग ग्रिडलॉक सड़कों से दबाव कम करने, शहरों के बीच यात्रा को आसान बनाने और संभावित रूप से प्रमुख आर्थिक लाभों को अनलॉक करने के लिए किया जा सकता है. हालांकि, इसके विपरीत तर्क ये है कि अभी इसमें सुरक्षा को लेकर काफी काम किया जाना बाकी है. दरअसल, इसमें थोड़ी सी भी चूक होती है तो कई लोगों की जान जा सकती है. इसकी स्पीड के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना जरूरी है.
क्या हैं खास बातें? इस पर काम कर रही कंपनी स्विसपॉड का कहना है कि यात्रियों या सामान को बिजली की रफ्तार से पहुंचा सकेगा. कंपनी के मुताबिक जिनेवा से ज्यूरिख की करीब 277 किलोमीटर की दूरी महज 17 मिनट में तय हो सकती है. इसी तरह न्यूयॉर्क सिटी से वॉशिंगटन डीसी की दूरी सिर्फ 30 मिनट में तय हो जाएगी. कंपनी के सीईओ डेनिस ट्यूडोर का कहना है कि स्विसपॉड की योजना अगले 4 से 5 साल में हाइपरलूप बाजार में आ जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि अगले नौ महीने में मिनी टेस्ट साइट पर काम करके हमें यह पता चल जाएगा कि तकनीक को कैसे इस्तेमाल करना है.
जब भी तेज ट्रांसपोर्ट की बात होती है तो लोग हवाई जहाज का सहारा लेते हैं या फिर बुलेट ट्रेन को भी इसका ऑप्शन माना जाता है. कहा जाता है कि इन दोनों ट्रांसपोर्ट मोड से काफी कम समय में लंबी दूरी की यात्रा तय की जा सकती है. लेकिन, अब ऐसे सिस्टम पर काम चल रहा है, जिससे हवाई जहाज और बुलेट ट्रेन से भी काफी कम समय में यात्रा की जा सकती है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे हो सकता है और फिर उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड कितनी होगी कि वो बुलेट ट्रेन से भी दोगुना स्पीड से चलेगी.
तो जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो सिस्टम क्या है और उससे किस तरह से तेज यात्रा का सपना साकार हो सकता है. साथ ही जानते हैं उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड के बारे में, जिससे सिर्फ कुछ मिनट में कई राज्य पार किए जा सकते हैं. क्या है ये तकनीक? यह खास तरह की तकनीक है, जो दिखने में ट्रेन की तरह है, लेकिन ट्रेन से काफी अलग है. इस खास सिस्टम को हाइपरलूप कहा जाता है, जिस पर अभी कई विकसित कंपनियां काम कर रही हैं और माना जा रहा है यह जल्द ही लॉन्च हो सकती है. अभी इस पर सुरक्षा को लेकर काम चल रहा है. हाइपरलूप में ट्रेन के टायर की तरह टायर नहीं होते हैं, बल्कि ये ट्यूब सिस्टम पर काम करता है. साथ ही इसमें ट्रेन के डिब्बों की तरह छोटे-छोटे कैप्सूल बनाए गए हैं और उनसे यात्रा करवाई जाती है.
ये जमीन की सतह पर नहीं, बल्कि ऊपर हैंगिंग स्टाइल में काम करता है और जमीन के सतह के ऊपर कैप्सूल ट्रैवल करते हैं. जिसके लिए एक खास तरह की एक सुरंग बनाई जाती है. अगर इसकी स्पीड की बात करें तो इससे 1200 किलोमीटर तक का सफर कुछ ही घंटो में पूरा किया जा सकता है. हाइपरलूप किस तरह अलग है? हाइपरलूप और नॉर्मल रेल में काफी अंतर होता है. इस सिस्टम में यात्रियों को ले जाने वाले पॉड ट्यूब या सुरंगों के माध्यम से यात्रा करते हैं, जिससे घर्षण को कम करने के लिए अधिकांश हवा को हटा दिया जाता है. इससे कैप्सूल की स्पीड काफी तेज हो जाती है और इससे कुछ ही मिनटों में कई मील की यात्रा आसानी से हो जाती है. वहीं, इसमें ट्रेन या कार की तरह पहियों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि पॉड्स को एयर स्की पर तैरने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
क्या है फायदे और नुकसान? हाइपरलूप ट्रेन या कार यात्रा की तुलना में सस्ता और तेज हो सकता है और हवाई यात्रा की तुलना में सस्ता और कम प्रदूषणकारी हो सकता है. उनका दावा है कि यह पारंपरिक हाई-स्पीड रेल की तुलना में तेज़ और सस्ता भी है, इसलिए हाइपरलूप का उपयोग ग्रिडलॉक सड़कों से दबाव कम करने, शहरों के बीच यात्रा को आसान बनाने और संभावित रूप से प्रमुख आर्थिक लाभों को अनलॉक करने के लिए किया जा सकता है. हालांकि, इसके विपरीत तर्क ये है कि अभी इसमें सुरक्षा को लेकर काफी काम किया जाना बाकी है. दरअसल, इसमें थोड़ी सी भी चूक होती है तो कई लोगों की जान जा सकती है. इसकी स्पीड के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना जरूरी है.
क्या हैं खास बातें? इस पर काम कर रही कंपनी स्विसपॉड का कहना है कि यात्रियों या सामान को बिजली की रफ्तार से पहुंचा सकेगा. कंपनी के मुताबिक जिनेवा से ज्यूरिख की करीब 277 किलोमीटर की दूरी महज 17 मिनट में तय हो सकती है. इसी तरह न्यूयॉर्क सिटी से वॉशिंगटन डीसी की दूरी सिर्फ 30 मिनट में तय हो जाएगी. कंपनी के सीईओ डेनिस ट्यूडोर का कहना है कि स्विसपॉड की योजना अगले 4 से 5 साल में हाइपरलूप बाजार में आ जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि अगले नौ महीने में मिनी टेस्ट साइट पर काम करके हमें यह पता चल जाएगा कि तकनीक को कैसे इस्तेमाल करना है.vvvvvv
जब भी तेज ट्रांसपोर्ट की बात होती है तो लोग हवाई जहाज का सहारा लेते हैं या फिर बुलेट ट्रेन को भी इसका ऑप्शन माना जाता है. कहा जाता है कि इन दोनों ट्रांसपोर्ट मोड से काफी कम समय में लंबी दूरी की यात्रा तय की जा सकती है. लेकिन, अब ऐसे सिस्टम पर काम चल रहा है, जिससे हवाई जहाज और बुलेट ट्रेन से भी काफी कम समय में यात्रा की जा सकती है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे हो सकता है और फिर उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड कितनी होगी कि वो बुलेट ट्रेन से भी दोगुना स्पीड से चलेगी.
तो जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो सिस्टम क्या है और उससे किस तरह से तेज यात्रा का सपना साकार हो सकता है. साथ ही जानते हैं उस ट्रांसपोर्ट की स्पीड के बारे में, जिससे सिर्फ कुछ मिनट में कई राज्य पार किए जा सकते हैं. क्या है ये तकनीक? यह खास तरह की तकनीक है, जो दिखने में ट्रेन की तरह है, लेकिन ट्रेन से काफी अलग है. इस खास सिस्टम को हाइपरलूप कहा जाता है, जिस पर अभी कई विकसित कंपनियां काम कर रही हैं और माना जा रहा है यह जल्द ही लॉन्च हो सकती है. अभी इस पर सुरक्षा को लेकर काम चल रहा है. हाइपरलूप में ट्रेन के टायर की तरह टायर नहीं होते हैं, बल्कि ये ट्यूब सिस्टम पर काम करता है. साथ ही इसमें ट्रेन के डिब्बों की तरह छोटे-छोटे कैप्सूल बनाए गए हैं और उनसे यात्रा करवाई जाती है.
ये जमीन की सतह पर नहीं, बल्कि ऊपर हैंगिंग स्टाइल में काम करता है और जमीन के सतह के ऊपर कैप्सूल ट्रैवल करते हैं. जिसके लिए एक खास तरह की एक सुरंग बनाई जाती है. अगर इसकी स्पीड की बात करें तो इससे 1200 किलोमीटर तक का सफर कुछ ही घंटो में पूरा किया जा सकता है. हाइपरलूप किस तरह अलग है? हाइपरलूप और नॉर्मल रेल में काफी अंतर होता है. इस सिस्टम में यात्रियों को ले जाने वाले पॉड ट्यूब या सुरंगों के माध्यम से यात्रा करते हैं, जिससे घर्षण को कम करने के लिए अधिकांश हवा को हटा दिया जाता है. इससे कैप्सूल की स्पीड काफी तेज हो जाती है और इससे कुछ ही मिनटों में कई मील की यात्रा आसानी से हो जाती है. वहीं, इसमें ट्रेन या कार की तरह पहियों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि पॉड्स को एयर स्की पर तैरने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
क्या है फायदे और नुकसान? हाइपरलूप ट्रेन या कार यात्रा की तुलना में सस्ता और तेज हो सकता है और हवाई यात्रा की तुलना में सस्ता और कम प्रदूषणकारी हो सकता है. उनका दावा है कि यह पारंपरिक हाई-स्पीड रेल की तुलना में तेज़ और सस्ता भी है, इसलिए हाइपरलूप का उपयोग ग्रिडलॉक सड़कों से दबाव कम करने, शहरों के बीच यात्रा को आसान बनाने और संभावित रूप से प्रमुख आर्थिक लाभों को अनलॉक करने के लिए किया जा सकता है. हालांकि, इसके विपरीत तर्क ये है कि अभी इसमें सुरक्षा को लेकर काफी काम किया जाना बाकी है. दरअसल, इसमें थोड़ी सी भी चूक होती है तो कई लोगों की जान जा सकती है. इसकी स्पीड के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना जरूरी है.
क्या हैं खास बातें? इस पर काम कर रही कंपनी स्विसपॉड का कहना है कि यात्रियों या सामान को बिजली की रफ्तार से पहुंचा सकेगा. कंपनी के मुताबिक जिनेवा से ज्यूरिख की करीब 277 किलोमीटर की दूरी महज 17 मिनट में तय हो सकती है. इसी तरह न्यूयॉर्क सिटी से वॉशिंगटन डीसी की दूरी सिर्फ 30 मिनट में तय हो जाएगी. कंपनी के सीईओ डेनिस ट्यूडोर का कहना है कि स्विसपॉड की योजना अगले 4 से 5 साल में हाइपरलूप बाजार में आ जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि अगले नौ महीने में मिनी टेस्ट साइट पर काम करके हमें यह पता चल जाएगा कि तकनीक को कैसे इस्तेमाल करना है