सब्जियां उगाकर और वर्मी कंपोस्ट बेचकर आत्मनिर्भर हो रहीं हैं महिलाएं
नरवा संवर्धन से जलस्तर में बढ़ोतरी, गौठान ने फसलों को बचाया आवारा मवेशियों से
रायपुर.
छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारियों को सहेजने की सुराजी गांव योजना का असर अब गांवों में दिखने लगा है। यह योजना खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती तो दे ही रही है, ग्रामीणों के लिए रोजगार के नए अवसर भी खोल रही है। कोविड-19 के चलते देशव्यापी लॉक-डाउन के दौर में भी महिलाएं बाड़ी में सब्जी उगाकर और गौठान में निर्मित वर्मी कंपोस्ट की बिक्री कर कमाई कर रही हैं। ये महिलाएं सब्जियों का वितरण कर ग्रामीणों की मदद भी कर रही हैं।
नरवा, गरवा, घुरवा, बारी योजना के अंतर्गत भू-जल स्तर सुधार, पशुधन विकास, जैविक खाद निर्माण और बाड़ी विकास के कार्यों के अब सकारात्मक परिणाम दिखना शुरू हो गया है। रायगढ़ जिले के बरमकेला विकासखंड में करीब डेढ़ हजार की आबादी वाले गांव हिर्री के गौठान में दो महिला स्वसहायता समूह सब्जी उगा रही हैं। श्री ग्राम्य भारती और लक्ष्मी स्वसहायता समूह की 15-15 महिलाएं गौठान की डेढ़ एकड़ बाड़ी में भिंडी, करेला, केला और कद्दू की खेती कर रही हैं। यहां से निकली सब्जियों को अभी लॉक-डाउन में निराश्रितों और जरूरतमंदों को वितरित किया जा रहा है। बची सब्जियों को बेचकर समूह की महिलाएं जीविकोपार्जन भी कर रही हैं।
हिर्री में कुछ अन्य स्वसहायता समूह की महिलाएं गौठान में वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के काम में लगी हुई हैं। अभी हाल ही में इन महिलाओं ने स्थानीय किसानों को 15 क्विंटल जैविक खाद बेचा है। किसानों को वर्मी कंपोस्ट उपलब्ध कराने के साथ साथी महिलाओं की बाड़ी के लिए भी वे जैविक खाद देती हैं। जैविक खाद के उपयोग से मृदा और पर्यावरण दोनों की सेहत सुधर रही है। वर्मी कम्पोस्ट निर्माण के दौरान केचुओं का संवर्धन कर इसका भी विक्रय किया जा रहा है। गौठान और बाड़ी में काम के दौरान सभी महिलाएं कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के उपायों का पालन कर रही हैं। साबुन से बार-बार हाथ धोने के साथ ही शारीरिक दूरी बनाए रखते हुए मास्क या कपड़े से मुंह ढंककर काम कर रही हैं।
सुराजी गांव योजना के अंतर्गत गांव के पास से गुजरने वाले नाले में जल संवर्धन के लिए बोल्डर चेकडैम बनाया गया है। इसके निर्माण से गांव के भू-जल स्तर में काफी सुधार आया है। पहले गर्मी के दिनों में गाँव के हैण्डपंप का पानी सूखने या नीचे चले जाने के कारण हर साल अतिरिक्त पाइप डलवाने की जरूरत पड़ती थी। पर इस साल उससे राहत है। भू-जल का स्तर यदि नहीं बढ़ा होता तो अभी लॉक-डाउन की स्थिति में हैंडपंप सुधार का कार्य और पानी की कमी दोनों ही बड़ी समस्या बन सकती थी। इधर-उधर घूमने वाले मवेशियों को अब गौठान में रखे जाने से किसान भी राहत महसूस कर रहे हैं। खुली चराई के कारण फसलों को होने वाले नुकसान से वे अब बेफिक्र हो गए हैं।