लंदन । वैज्ञानिकों ने समुद्र में 5, 500 नए वायरस खोज निकाले हैं जो कि किसी भी खतरनाक महामारी को जन्म दे सकते हैं। यह दावा शोध कर्ताओं ने ताजा अध्यययन के बाद किया गया है। अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स का कहना है कि कोरोना की तरह ये भी आरएनए वायरस हैं।
चिंता वाली बात ये है कि खोजे गए वायरस भारत के अरब सागर और हिंद महासागर के उत्तर पश्चिमी इलाकों में भी मौजूद हैं। वायरस ढूंढने के लिए वैज्ञानिकों ने दुनिया के सभी समुद्रों के 121 इलाकों से पानी के 35 हजार सैंपल्स लिए। जांच में उन्हें लगभग 5,500 नए आरएनए वायरस का पता चला। ये 5 मौजूदा प्रजातियों और 5 नई प्रजातियों के थे। रिसर्चर मैथ्यू सुलिवान का कहना है कि सैंपल्स के हिसाब से नए वायरस की संख्या काफी कम है। हो सकता है कि भविष्य में लाखों की संख्या में वायरस मिलें। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये रिसर्च खासआरएनए वायरस को लेकर हुई है क्योंकि डीएनए वायरस के मुकाबले वैज्ञानिकों ने इन पर स्टडी कम की है।
सुलिवान के मुताबिक, आज हमें केवल उन्हीं आरएनए वायरस के बारे में पता है, जिन्होंने दुनिया को मौत के खतरे में डाला है। इनमें कोरोना, इंफ्लुएंजा और इबोला वायरस शामिल हैं। इसलिए भविष्य में नई बीमारियों से बचने के लिए हमें पहले से तैयार रहना जरूरी है। रिसर्च में टाराविरिकोटा, पोमीविरिकोटा, पैराजेनोविरिकोटा, वामोविरिकोटा और आर्कटिविरिकोटा नाम की 5 नई वायरस प्रजातियां पाई गई हैं। इनमें से टाराविरिकोटा प्रजाति दुनिया के हर समुद्र में मिली है। वहीं आर्कटिविरिकोटा प्रजाति के वायरस आर्कटिक सागर में पाए गए। सुलिवान के अनुसार इकोलॉजी के हिसाब से देखा जाए तो ये खोज बेहद जरूरी है। यह स्टडी समुद्री क्लाइमेट चेंज की जांच करने वाले तारा ओशियंस कंसोर्टियम नाम के ग्लोबल प्रोजेक्ट का हिस्सा है।
स्टडी में सभी आरएनए वायरस में आरडीआरपी नाम का प्राचीन जीन मिला है। माना जा रहा है कि यह जीन अरबों साल पुराना है। तब से लेकर अब तक ये कई बार इवॉल्व हो चुका है।आरडीआरपी की उत्पत्ति कैसे हुई, वायरस में इसका क्या काम है, इंसानों के लिए ये कितना खतरनाक है, इन सभी सवालों का जवाब देने में वैज्ञानिकों को काफी समय लगेगा। मालूम हो कि पूरी दुनिया पिछले दो साल से कोरोना महामारी से जूझ रही है। कोविड के बदलते स्वरूपों के फैलने से लोग दहशत में हैं।