लंदन । अमेरिकी पुलिस की हिरासत में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद पूरी दुनिया में रंगभेद के खिलाफ की जोरदार आवाज उठी है। फ्लॉयड का नाम दुनिया के कोने-कोने में पहुंच चुका है। पिछले सप्ताह मिनियापोलिस पुलिस की हिरासत में हुई फ्लॉयड की मौत के बाद केन्या के नैरोबी से लेकर सीरिया के इदलिब तक की दीवारों पर फ्लॉयड का चेहरा पेंट किया गया है। उनका नाम फुटबॉल खिलाड़ियों की शर्ट से लेकर लंदन, केप टाउन, तेल अवीव और सिडनी के लोगों की जुबान पर है। इस प्रकार का समर्थन और आक्रोश अमेरिका की शक्ति और उसके विस्तार को परिलक्षित करता है जिसकी सबसे बुरी और सबसे अच्छी चीजें दुनिया का ध्यान आकर्षित करती हैं। इससे यह भी पता चलता है कि समाज में गहरे पैठ बना चुका नस्लवाद केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है। अमेरिकी प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के वास्ते पेरिस में आयोजित प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले जेवियर दिनतिमील ने कहा, यह अमेरिका में हुआ, लेकिन यह फ्रांस में भी होता है, यह हर जगह होता है। पेरिस के प्रदर्शनकारियों ने हम सभी जॉर्ज फ्लॉयड हैं का उद्घोष किया था और साथ में 24 वर्षीय अदमा ट्रोरे का नाम भी लिया था जिसकी 2016 में पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी। अधिकारी अभी भी उन परिस्थितियों की जांच में लगे हैं जिनमें ट्रोरे की मौत हुई थी। दुनियाभर के लोग अमेरिकी कहानियों को टेलीविजन और सिनेमा के पर्दे पर देखते हैं और समानता तथा स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर स्थापित लेकिन नस्लवाद और गुलामी की व्यवस्था की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले देश के प्रति आकर्षित होते हैं। बाहर से देखने पर अमेरिकी हिंसा और नस्ली भेदभाव विशिष्ट अमेरिकी संस्कृति का हिस्सा नजर आता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है, क्योंकि जब दुनिया ने एक श्वेत पुलिसकर्मी के घुटनों के नीचे फ्लॉयड को अपनी एक-एक सांस के लिए लड़ते हुए देखा तब उन्हें यह अपने शहरों और नगरों में होते अन्याय जैसा ही नजर आया।