एसबीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कुल लोन लेने वालों में 47 फीसदी लोग लोन एक्सटर्नल बेंचमार्क (ईबीआर) से जुड़े हैं। इसका सीधा मतलब हुआ कि आरबीआई की दर बढ़ने से इनका ब्याज खुद बढ़ जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, पांच बार में 2.25 फीसदी रेपो दर की बढ़त से रिटेल और एमएसएमई ग्राहकों पर 68,625 करोड़ रुपये की लागत आएगी। एक बीपीएस की बढ़त से 305 करोड़ रुपये की लागत बढ़ती है। इसमें रिटेल ग्राहक पर 65 करोड़ रुपये और एमएसएमई पर 240 करोड़ का बोझ पड़ता है।
बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि रेपो दर की बढ़त से सिस्टम की तरलता में कोई कमी नहीं आएगी। बल्कि इस समय तरलता काफी है। उधर, दूसरी ओर बैंक ऑफ बड़ौदा ने एक रिपोर्ट में कहा कि, अभी भी फरवरी में आरबीआई 0.25 फीसदी की बढ़त कर सकता है। हालांकि, अगर स्थितियां सही रहीं तो हो सकता है कि दरों में बढ़ने का क्रम रुक भी जाए। कुछ ब्रिक्स देशों में दरों के बढ़ने के बाद महंगाई उनके नियंत्रण में आई है और इसी तरह की स्थिति भारत में भी आरबीआई के पांच बार के फैसले से दिख रही है।
विश्लेषकों एवं अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रेपो दर में एक और बढ़ोतरी हो सकती है। यह बढ़कर करीब 6.5-6.75 फीसदी तक पहुंच जाएगी। एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा, फरवरी में नीतिगत दर में 0.25 फीसदी की एक और वृद्धि हो सकती है। एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने कहा, ताजा नीतिगत घोषणा से संकेत मिलता है कि दरों में और बढ़ोतरी हो सकती है। हमें इसके 6.5-6.75 फीसदी पर जाकर रुकने की उम्मीद है।’ यूबीएस इंडिया की अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन ने कहा, हम फरवरी की नीतिगत समीक्षा में 0.25% की एक और वृद्धि हो सकती है। भले ही मुख्य महंगाई आगे चलकर कम हो जाए।