ढाका | जुल्म-ओ-सितम की वजह से 1971 में देश का बड़ा हिस्सा खो चुका पाकिस्तान इन दिनों अपने आका चीन के कहने पर बांग्लादेश से दोस्ती बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान भले ही पांच दशक पुरानी घटना भूल गया हो, लेकिन बांग्लादेश का जख्म आज भी हरा है। बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने कहा है कि पाकिस्तान का नरसंहार और महिलाओं से बलात्कार बांग्लादेश भूला नहीं है। पाकिस्तान ने अभी तक इसके लिए माफी भी नहीं मांगी है।
भारत के खिलाफ एजेंडे को बढ़ाने के लिए चीन की चाल के तहत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने 22 जुलाई को बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना से फोन पर बात की। बताया गया कि दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बाढ़ और कोविड-19 महामारी के अलावा द्विपक्षीय सहयोग और बेहतर संबंधों को लेकर भी बात हुई। पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को भी उठाया।
राजनीतिक पंडित यह उत्सुकता से बांग्लादेश की ओर नजर टिकाए हैं कि उसका अगला कदम क्या होगा। हालांकि, कई जानकारों का मानना है कि बेहद खराब इतिहास की वजह से इस्लामाबाद और ढाका के बीच बेहतर संबंध संभव नहीं है। यदि पाकिस्तान के कॉल का सकारात्मक रूप से जवाब देता है तो इससे भारत-चीन तनाव पर उसका स्टैंड साफ हो जाएगा।
बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मेनन ने कहा, ”उन्होंने (इमरान खान) कोविड-19 और बाढ़ की स्थिति पर बातचीत के लिए फोन किया। यह कुछ और नहीं, सामान्य शिष्टाचार बातचीत थी। यह अच्छा है यदि वे (पाकिस्तान) हमसे रिश्ते सुधार सके।” लेकिन इसके साथ ही मेनन ने यह भी कहा कि मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा 30 लाख बांग्लादेशियों का नरसंहार और लाखों महिलाओं का बलात्कार को देश भूला नहीं है।
मेनन ने आगे कहा, ”1971 मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने नरसंहार किया, लेकिन इसके लिए अभी तक माफी नहीं मांगी है। हम सभी के साथ दोस्ती रखना चाहते हैं, लेकिन यह कैसे संभव है यदि वह माफी नहीं मांग सकते हैं।”
ढाका के साथ रिश्ते को सामान्य बनाने के लिए इस्लामाबाद जोर लगा रहा है। उसने हाल ही में बांग्लदेश युद्ध अपराध को लेकर कुछ प्रस्ताव स्वीकार किए और मानवता के खिलाफ अपराध के दोषी पाए गए कुछ लोगों को सजा भी दी, लेकिन यह भी आरोप लग रहे हैं कि पाकिस्तान बांग्लादेश में अशांति फैलाने के लिए घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है।
बांग्लादेश के जहाज राज्य मंत्री खालिद महमूद चौधरी ने कहा, ”बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क देशों में शामिल हैं। दक्षिण एशिया के मुद्दों को लेकर दो प्रधानमंत्री कभी भी बात कर सकते हैं। हालांकि, हमारे बीच कुछ अनसुलझे मुद्दे हैं। यदि वे हमारे साथ रिश्तों को मजबूत करना चाहते हैं, तो पहले उन्हें सुलझाना होगा।”