कोण्डागांव : विकासखण्ड कोण्डागांव से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सघन वनो से घिरे हुए आदिवासी बहुल गांव मयूरडोंगर और चारगांव। दो या तीन वर्ष पहले उक्त दोनों गांव के वनाधिकार पट्टेधारी कृषक अपने पट्टे से प्राप्त कृषि भूमियों में पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही धान की काश्तकारी एवं वनोपज पर निर्भर होकर अपना जीवन यापन कर रहे थे। यूं तो स्थानीय ग्रामीणों का जल एवं जंगल से प्राकृतिक नाता सदियों से है। इन्हीं वनों और वनाधिकार से प्राप्त कृषि भूमि में विकास की सम्भावनाओं को देखकर स्थानीय जिला प्रशासन द्वारा वर्ष 2017-18 में चारगांव एवं मयूरडोंगर को वृहत्तर कार्ययोजना में शामिल किया गया। इसके अन्तर्गत इन दोनो ग्रामोें में वनाधिकार पट्टाधारी कृषकों को कृषि, उद्यानिकी, क्रेडा, पशुपालन एवं मत्स्य विभाग की समस्त योजनाओं से एक साथ लाभांवित करने का निर्णय लिया गया ताकि वनाधिकार पट्टों के तहत् विकास के नये माॅडल के रूप में इन्हें स्थापित किया जा सके।
दो वर्षों में बदल गयी ग्रामों की तस्वीर
वर्तमान में इन ग्रामों को देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि जो गांव पहले बीहड़ की श्रेणी में आते थे आज वहां जगह-जगह मत्स्य पालन हेतु तालाब, कुकुट एवं पशुपालन हेतु शेड, सिंचाई हेतु सोलर ऊर्जा की ईकाईयों की एक श्रृंखला क्रमवार परिलक्षित होती है। इस क्रम में वृहत्तर कार्ययोजना के तहत् ग्राम चारगांव के 27 वनाधिकार पट्टाधारी कृषक परिवारों का चयन करके उनके 168 एकड़ भूमि में फैन्सिंग तार से घेराव कर बोरवेल खनन कराये गये ताकि सभी कृषक परिवारों के पास कम से कम तीन फसलीय कृषि का विकल्प रहे। साथ ही उद्यानिकी विभाग के माध्यम से खेतों के मेड़ो में मुनगा, नारियल, आम के पौधों का रोपण भी किया गया। इसी प्रकार ग्राम मयूरडोंगर में भी चयनित वनाधिकार पट्टाधारी 28 कृषक परिवारों के 115 एकड़ भूमि को तारों द्वारा सुरक्षित कर 08 बोरवेल खनन किया गया। साथ ही इसी भूमि में 10 तालाब और 37 भूमि मरम्मत के कार्य भी प्रारम्भ हुये। वर्तमान में यहां 20 तालाब और 25 कुकुट शेड का निर्माण हो चूका है। साथ ही सिंचाई हेतु ट्यूबवेल बोरखनन, ड्रिप स्प्रिंकलर के माध्यम से आधुनिक खेती की शुरूआत भी की जा चूकी है। साथ ही इन वनाधिकार पट्टाधारी चयनित परिवार की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से पोल निर्माण जैसे रोजगार परक प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इस संबंध में ग्राम मयूरडोंगर के कृषक जयसिंह का कहना था कि सौर ऊर्जा पम्प के कारण उसके खेत आज सिंचाई सुविधा से युक्त हुये और उसकी वर्षो की साध पूरी हुई। क्योंकि गर्मियों में जो खेत सूखे और बंजर रहते थे अब उन्हीं खेतों में खरीफ के बाद रबी की फसल भी हो सकेगी। इसके लिये उसे उद्यानिकी विभाग से मुनगा और आम के उन्नत पौधे एवं कृषि विभाग की ओर से निःशुल्क दिये गये। इसके साथ ही उसके जैसे अन्य वनाधिकार पट्टाधारी 13 कृषकों के खेत में भी सौर सुजला योजना के तहत् सोलर पम्प लगाये गये हैं। इसी प्रकार ग्राम चारगांव में भी माॅ शीतला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष सुमित्रा बाई की अगुवाई में समूह द्वारा हरी सब्जियों के उत्पादन का जिम्मा उठाया गया है। और कृषि विभाग की सहायता से मंूगफल्ली, धनिया जैसे हरी सब्जियों की क्यारियां लगाई गई है। इसी गांव की एक अन्य महिला समूह माॅ दन्तेश्वरी स्व-सहायता समूह ने गांव के नजदीक नारंगी नदी पर बने अस्थायी बोरी बंधान एनिकट में मत्स्य पालन करने की इच्छा जताई। इसके अलावा जिला प्रशासन ने वनाधिकार पट्टाधारी कृषकों को विकास की मुख्य धारा में लाने के लिये विकासखण्ड केशकाल के ग्राम रावबेड़ा में भी 72 एकड़ भूमि में भी समन्वित मेगा प्रोजेक्ट का श्रीगणेश किया है।
जिले में वनाधिकार अधिनियम के तहत् ग्राम स्तर पर प्राप्त 67920 प्राप्त दावों मे से अब तक 52738 प्रकरणों को अनुमोदित कर दिया गया है। जबकि 15182 दावें अपात्र पाये गये हैं। इनमें 59832.574 एकड़ भूमि वितरित किये गये हैं।