अपने प्रांत की भाषा अथवा मातृभाषा का प्रचार प्रसार करना अच्छा है मगर दूसरी भाषा का विरोध करना किसी भी दृष्टि से उचित नही ।दरअसल में राजनीतिक स्वार्थसि,िद्व के लिए ही हिन्दी का खुलकर विरोध किया जाता है। हरेक भाषा का अपना प्रथक-प्रथक अस्तित्व है और प्रथक महत्व भी ,मगर जब हम राष्ट्रीय स्तर पर किसी भाषा का जिक्र करते है तो वह हिन्दी ही है।
हिन्दुस्तान बहु भाषा-भाषी मुल्क है जहॉ चार सौ से भी ज्यादा बोलियां और भाषांए बोली जाती है,इसमें शक नहीं कि सबसे ज्यादा बोली व समझी जाने वाली भाषा हिन्दी ही है।जनगणना विभाग के आंकडों के अनुसार 41 प्रतिशत लोग हिन्दी में कार्य करते हैं।हिन्दी आज भारत की राष्ट्रभाषा है,लेकिन देश की सम्पर्क और साहित्य -भाषा के रूप में इसके महत्व से दुनिया सदियों से परिचित है। यही वजह है कि सर्वप्रथम विदेशियों ने ही हिन्दी के इतिहास को सूत्रबद्ध करने और इसके व्याकरण को मानक रूप देने के प्रयास किए ।इसमें फ्रांस के गार्सा द तासी का नाम अग्रणी है । किसी भी मुल्क की एकता और अखंडता को बनाए रखने में भाषा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।भाषा ही वह माध्यम है जिसके द्धाराकोई भी समाज अपनी संस्कृति और अस्मिता को सुरक्षित रख पाता है।दरअसल में कडवी सचाई है कि भाषा ही सबसे पहले अस्मिताओं व संस्कृतियों के टकराव का शिकार हुई ।हिन्दी भी इसका अपवाद नहीं है।
पिछले दशकों में हिन्दी को राजनीतिक अवसरवादियों ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करना चाहा तो कभी कुछ लोगो ने अपनी स्वार्थसिद्वि के लिए इसका दुरूपयोग करना चाहा।आज हिन्दी के प्रति जिस तरह से दक्षिण प्रांतीय और मराठी लोग होहल्ला मचा रहे हैंवह उचित नहीं है इतिहास साक्षी है कि हिन्दी भाषा को लेकर कभी इन दोनो प्रांतों में टकराव नही था।आज से सैकडों बषों पूर्व दक्षिण के आचायों ने हिन्दी को अपनाकर अपनी बात जन-जन तक पहुंचाई रामानुजाचार्य,वल्लभाचार्य,रामानंद ने हिन्दी की अहमियत को समझा और इसे व्यवहार में लाए । इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलता है कि तंजौर के भोसलवंशीय शाहजी महाराज केरल के तिरूवनंतपुरम के राजा स्वाति तिरूनाल श्रीराम वर्मा उस दौर में हिन्दी के गीत लिखा करते थे। यहां तक कि विजयनगर रियासत ने अपने दरबार में हिन्दी को विशेष दर्ज दे रखा था। अहमदनगर ,गोलकुंडा,बीजापुर में भीदक्खिनी हिन्दी का दवदबा था।
ओडिसा के चैतन्य महाप्रभु ने हिन्दी बहुला बृजबुलि का प्रयोग किया। तमिलनाडु में हिन्दी की मुखालफत 1937 में तभी शुरू हों गई थी जब राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास में हिन्दी को लाने में खास भूमिका निभाते हुए इसका समर्थन किया था, लेकिन डीएमके ने तब उसका हिसक विरोध किया था लिहाजा।इस दौरान कुछ लोगो की जान भी चली गई थी। 1964 में एक मर्तवा पुन: हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास किया गया तो गैर हिन्दी प्रदेशों ने खुलकर विरोधप्रर्दशन किए ।
गौरतलब यह भी हैं कि1967 के चुनाव में द्रमुक के जीतने की अहंम वजह हिन्दी का विरोध ही था। द्रमुक ने हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने का जमकर विरोध किया और यह प्रचारित किया कि यदि हिन्दी का दवदवा हुआ तो तमिल भाषा का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा द्रमुक ने सत्ता में आते ही सबसे पहले स्कूलों में हिन्दी शिक्षण को बंद करा दिया ।सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात यह है कि तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध कर उसे राजनीतिक मुदूदा बना दिया हालाकि यह वही तमिल राज्व्य है जहां से गाधी जी ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए आंदोलन की शुरूआत की थी जबकि गाधी जी की मात्रभाषा हिन्दी नहीं गुजराती थै ज्यादा महत्वपूर्ण बात तो यह है कि इसके बावजूद भी उन्होने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का समर्थन किया था क्योकि वे जानते थे कि हिन्दी जनज न की भाषा हे हिन्दी के प्रचार -प्रसार के लिए गांधी जी द्धारा दक्षिण का चयन महज इत्तफाक नही था 1918 में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना की मौजूदा हालात में हिन्दी को संविधान में राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने में गोपाल स्वामी आयंगर का भीअहम योगदान रहा ।
यकीनन महाराष्ट्र में भाषा के प्रति कभी कटरता नहीं रही । संत तुकाराम ,संत नामदेव , संत ज्ञानेश्वर ,जैसी शख्सियतों की रचनाएं आज भी हिन्दी के पाठृयक्रम का हिस्सा हैं। शिवाजी के दरबार में हिन्दी को विशेष दर्ज प्राप्त था ।वही उनका बेटा सम्भाजी हिन्दी का चर्चित कवि था । सचाई यह भी है कि महाराष्ट्र में पेशवा ,होलकर,सिधिया, सहित मराठी राजधराने राजकार्य हिन्दी में करते थे। बाल गंगाधर तिलक ने हिन्दुस्तानियों से हिन्दी सीखने का आहवान करते हुए कहा था – देश के संगठन के लिए ऐसी भाषा की जरूरत है जिसे सुगमता से समझा जा सके। कडवा सच यह है कि किसी भी विरादरी को निकट लाने के लिए भाषा का होना महत्वपूर्ण तत्व हैं।यह सही है कि देश की अर्थव्यवस्था का आधे से ज्यादा का बाजार हिन्दी पर टिका है भारतीय हिन्दी फिल्म उधोग के गढ मुंबई में औसतन हर साल हिन्दी की 600 फिल्में बनती है जो तकरीबन 12000 करोड रूप्ये का कारोबार करती है
अपने प्रांत की भाषा का प्रचार -प्रसार करना अच्छा है मगर इसके लिए दूसरी भाषा का विरोध करना किसी भी दृष्ट्रि वाजिव नही हैं।इस सचाई से भली भाति हमस ब वाकिफ है कि राजनीतिक स्वार्थसिद्वि के लिए ही हिन्दी की मुखल्फत की जाती है। हर भाषा का अपना अलग अस्तित्व है और अलग महत्व भी मगर जब हम राष्ट्रीय स्तर पर किसी एक भाषा की बात करते है तो वह हिन्दी ही है बल्कि देशवासियों को एकता के सूत्र में भी बांधती है।
यही नही हिन्दी मात्र एक भाषा नहीं बल्कि विविध बोलियों का समुच्चय है और ये बोलियां किसी एक क्षेत्र विशेष ,स्थान विषेश राज्य विशेष से नहीं ली गई , बल्कि ये विभिन्न प्रांतो से आई है जिन्हे हिन्दी ने बिना किसी भेदभाव के अपने में समाहित कर लिया है।वर्तमान दौर में यह दिल्ली , मप्र ,राजस्थान ,बिहार ,हरियाणा उत्तर प्रदेश ,छतीसगढ, उतराखंड ,झारखंड और हिमाचल प्रदेश की राजभाषा होने के साथ ही समूचे देश में सबसे ज्यादा बोली व समझी जाने वाली भाषा हैं।