नई दिल्ली. टेलीकॉम कंपनियों ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) मामले में सुप्रीम कोर्ट से खुली सुनवाई की अपील की है। एजीआर मामले में भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर को सरकार के पक्ष में फैसला देते हुए एजीआर के आकलन के लिए दूरसंचार विभाग के फॉर्मूले को बरकरार रखा था। इससे तहत टेलीकॉम कंपनियों पर सरकार के 1.47 लाख करोड़ रुपए बकाया होने का अनुमान है। सरकार ने 23 जनवरी तक भुगतान करने को कहा है।
खुले कोर्ट में सुनवाई की टेलीकॉम कंपनियों की याचिका बुधवार को जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच में मेंशन की गई। खुली अदालत में सुनवाई का मतलब होगा कि मीडिया और आम लोग भी सुनवाई के दौरान मौजूद रह सकेंगे। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि वे चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े से बात कर फैसला करेंगे।
एजीआर क्या है?
टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर का 3% स्पेक्ट्रम फीस और 8% लाइसेंस फीस के तौर पर सरकार को देना होता है। कंपनियां एजीआर की गणना टेलीकॉम ट्रिब्यूनल के 2015 के फैसले के आधार पर करती थीं। ट्रिब्यूनल ने उस वक्त कहा था कि किराए, स्थायी संपत्ति की बिक्री से लाभ, डिविडेंड और ब्याज जैसे नॉन कोर स्त्रोतों से प्राप्त रेवेन्यू को छोड़ बाकी प्राप्तियां एजीआर में शामिल होंगी। विदेशी मुद्रा विनिमय (फॉरेक्स) एडजस्टमेंट को भी एजीआर में माना गया। हालांकि फंसे हुए कर्ज, विदेशी मुद्रा में उतार-चढ़ाव और कबाड़ की बिक्री को एजीआर की गणना से अलग रखा गया। दूरसंचार विभाग किराए, स्थायी संपत्ति की बिक्री से लाभ और कबाड़ की बिक्री से प्राप्त रकम को भी एजीआर में मानता है। इसी आधार पर वह टेलीकॉम कंपनियों से बकाया फीस की मांग कर रहा था।