आयुर्वेद को दिया सम्मान —देर आये दुरुस्त आये

केंद्र सरकार ने इस संक्रमण काल में जब आधुनिक चिकित्सा शास्त्र से नियंत्रण पाने में आशातीत सफलता न मिलने के बाद आयुर्वेद चिकित्सा को मान्यता दी। यह बड़ी प्रसन्नता और गौरव की बात हैं। यहाँ एक बात पर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता हूँ। पहली बात संसार की प्रत्येक वस्तु औषधि हैं और इसके सिवाय कुछ नहीं। दूसरी बात यह बहुत महत्वपूर्ण हैं की जिस देश की औषधियां उसी देश के निवासियों को लाभकारी होती हैं। आयुर्वेद चिकित्सा व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार की जाती हैं और लाभकारी होती हैं ,क्योकि प्रकृति –वातज ,पित्तज ,कफज द्वंदज होती हैं।
आजकल अंधाधुंध काढ़ा का उपयोग किया जा रहा हैं ,इस कारण कई को काढ़े के उपद्रव हो रहे हैं उन्हें नुक्सान भी हो रहा हैं। इसके लिए आवश्यक हैं की वे अपनी प्रकृति के अनुसार ले। जैसे किसी की पित्तज प्रकृति होने से और उनके द्वारा पित्तज योगों के कारण उनको हानि हो रही हैं। इसके लिए अनुभवी वैद्यों से सलाह लेकर चिकित्सा करनी चाहिए। इसी प्रकार गिलोय और अन्य औषधियों का उपयोग सावधानी करना चाहिए।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं में किसी किस्से को रिएक्शन होने लगता हैं इसी प्रकार आयुर्वेदिक औषधीय भी प्रकृति के अनुसार लाभकारी होती हैं। इसके लिए आवश्यक हैं जो औषधि हानिकारक हो उससे बचे ,जिससे आप सुरक्षित के साथ चिकित्सा विज्ञान के प्रति विश्वास न घटे ।
आदत और प्रकृति में यही अंतर् होता हैं। आदत बदल सकती हैं पर प्रकृति नहीं।

शेयर करें