आध्यात्म और इतिहास का अनूठा संगम है ओरछा राम राजा मंदिर

मुरैना । मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड का अंश भाग ओरछा सामान्यत: काफी पिछड़ा क्षेत्र रहा है यहां का इतहास 15वीं शताब्दी से कुछ यूं रहा यहक्षेत्र बुन्देली राज्य मैं आता था राजा रुद्रप्रताप सिंह जू बुंदेला यहां के शासक थे जिन्होंने सिकन्दर लोदी से युद्ध लडा था, पूर्व मैं ओरछा जिला टीकमगढ का हिस्सा था, लेकिन2001मै प्रदेश सरकार ने नया ज़िला निवाड़ी बनाया तभी से ओरछा निवाड़ी जिले मैं है भारत के इतिहास में उत्तर प्रदेश के जिला झांसी की सीमा से लगा यह क्षेत्र अध्यात्म और इतिहास का अनूठा संगम है। इस अनूठे संगम को भारतिय पटल पर विकसित करने के लिए मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अनूठा प्रयास किया हैं। ग्वालियर चम्बल के पत्रकारों का एक दिवसिय भ्रमण जनसम्पर्क द्वारा ओरछा राम मंदिर का कराया गया। इस दौरान मीडिया ने खंगाले कुछ रहस्य निहारे यहां के पुरातत्व जो खण्डहरों में तब्दील हो रहे है। उनका सुरक्षित कर निर्माण की महती आवश्यकता है व्यापक द्दष्टि कोण से देखा जाये तो रामराजा सरकार के मन्दिर के आस-पास स्पेश का आभाव है पर्यटन की नजरों से सड़क मार्ग सकोचिल है जिसका विस्तार आवश्यक है। यहां लाई ओवर बेतवा नदी परऔर झांसी ओरछा के नदी-नालों पर भी आवश्यक है हालांकि निवाडी जिला बनने के बाद यहां राजनेता के रूप में बृजेन्द्र सिंह राठौड़ जो प्रदेश सरकार में केबिनेट मंत्री है ने विकास की परिकल्पना की और उसे मूर्त रूप देने के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने संकल्प लिया प्रदेश सरकार यहां महोत्सव मनाने जा रही है
यहां के मुख्य आकर्षण
रामराजा सरकार का मन्दिर है जहां जन जन की उमड़ती श्रद्धा विश्वास ही अध्यात्म का सेतु निर्माण करती है और श्रृद्धालुओं की कामनाओं पूतब करती प्रभुकी वह अद्भुत शत्ती ही आकर्षण है यहां भगवान राम की मर्यादाऔं के अनुरुप परंपराओं का आज भी पालन होता है। जिसमें समय-समय पर पूजन आरती भोग बीड़ा शयन प्रातरू वंदन राजाओं की तरह सरकार को गार्ड आफ आनर दिया जाता है बच्चे बूढ़े जवान स्त्री पुरुषों के दिलों में प्रभु की अगाध मान्यता है। इसके अलावा मंदिर के आस पास आकर्षण जहांगीर महल, राज महल, राय प्रवीन महल, लक्ष्मीनारायण मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, फूलबाग, सुन्दर महल भी अपनी प्राचीन गाथाओं का इतहास प्रदर्षित करते हैं ।
किंवदंती है कि सबसे पहले लोगों ने बुंदेलखंड में रहना शुरू किया था। यही वजह है कि बुन्देली भाषा और यहां के हर गांव और शहर की अनुपम कहानियां हैं बुंदेलखंड की यह पावन धरती ओरछा राम राजा सरकार के आगमन स्थापना से सामाजिक और अध्यात्म मैं अपना स्थान बनाने मैं सफल हुइ राम को राज के रुपमै स्थापित करने के लियेप्रभु राम की मूर्ति को मधुकर शाह बुन्देला के राज्यकाल (1554-92) के दौरान उनकी रानी गनेश कुवर अयोध्या से लाई थीं। रानी गनेश कुंवर वर्तमान ग्वालियर जिले के करहिया गांव की परमार राजपूत थीं। राम मैं रानी जब अयोध्या तपकरने पहुंची तो उन्है काफी दिनों तक प्रभु दर्षन नहीं हुये उन दिनों वहां महाकवि तुलसीदास भी प्रभु के भजन मैं लीन थे अचानक रानी गनेशकुंअर का प्रभुराम से सा क्षात्कार हुआ रानी की अन्तर आत्मा मैं प्रभुने आभास कराया मैं चलूंगा पुख्य नक्षत्र मैं कहीं रुकूंगा ही यदि ठहर गया तो आगे नहीं जासकूंगा मुझे पैदल ही लेक र जाना होगा भत्तिऔर श्रद्धा का वह क्षण विलक्षण था राम लला कहां मिलेंगे यह विचार करते करते रानीने सरयू मैया में कूदकर प्राण त्यागने का निश्चय कर बीच मझधार मैं कूद पडी सर्वेश्वर प्रभू एक मूर्ति के रुप मैं प्रकट हो गये लाने के हाथोंमै राम लला आगये यहां एक और गूढ रहस्य और प्रकट हुआ कि जब राम जी वनवास को गये तब राम लला की मूतब उन्होंने वनाइ थी।

वो भगवान का विछोह नहीं सह सकीं थी 14 बर्ष तक उन्ही राम लला को अपनाते रही जब 14बर्ष मैं प्रभु लोटे तो माता कोशिल्या ने वह भव्य राम लला की मूतब को सरयू मैं विसर्जित करदिया था वहीं राम लला रानी को सरयू मैया मैं मिल गये और रानी सभी शर्तों के साथ पैदल चल पडी उन्होंने प्रभु के चतुर्भुज मंदिर बनने की कल्पना संजोइ थी लेकिन रानी जैसे ही अपनेमहल मैं पहुंची तो रात्रि हो जाने के कारण भगवान राम को कुछ समय के लिए महल के भोजन कक्ष में स्थापित कर दिया उधर भगवान की स्थापना को मंदिर तैयार था । लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है और राम नवमी को यहां हजारों श्रद्धालु इक- होते हैं। राम बरात का आयोजन भव्य आयोजन किया जाता है हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है
सावन भादों की अद्भुत मीनारें
मंदिर के पास एक बगान है जिसमें स्थित काफी ऊंचे दो मीनार (वायू यंत्र) लोगों के आकर्षण का केन्द्र हैं। ज्न्हें सावन भादों कहा जाता है कि इनके नीचे बनी सुरंगों को शाही परिवार अपने आने-जाने के रास्ते के तौर पर इस्तेमाल करता था। इन स्तंभों के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है कि वर्षा ऋतु में हिंदु कलेंडर के अनुसार सावन के महीने के खत्म होने और भादों मास के शुभारंभ के समय ये दोनों स्तंभ आपस में जुड़ जाते थे। हालांकि इसके बारे में पुख्ता सबूत नहीं हैं। इन मीनारों के नीचे जाने के रास्ते बंद कर दिये गये हैं एवं अनुसंधान का कोई रास्ता नहीं है।
इतिहास से जुड़े कुछ पल
इन मंदिरों को दशकों पुराने पुल से पार कर शहर के बाहरी इलाके में रॉयल एंक्लेव (राजनिवास्स) है। यहां चार महल, जहांगीर महल, राज महल, शीश महल और इनसे कुछ दूरी पर बना राय परवीन महल हैं। इनमें से जहांगीर महल के किस्से सबसे ज्यादा मशहूर हैं, जो मुगल बुंदेला दोस्ती का प्रतीक है। कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने अबुल फज़ल को शहजादे सलीम (जहांगीर) को काबू करने के लिए यहां भेजा था, लेकिन सलीम ने बीर सिंह की मदद से उसका कत्ल करवा दिया। इससे खुश होकर सलीम ने ओरछा की कमान बीर सिंह को सौंप दी थी। वैसे, ये महल बुंदेलाओं की वास्तुशिल्प के प्रमाण हैं। खुले गलियारे, पत्थरों वाली जाली का काम, जानवरों की मूर्तियां, बेलबूटे जैसी तमाम बुंदेला वास्तुशिल्प की विशेषताएं यहां साफ देखी जा सकती है ।
हरदौल की कहानी
जुझार सिंह (1627-34) के राज्य काल की दास्तां है। दरअसल, मुगल जासूसों की साजिशभरी कथाओं के कारण्् इस राजापर शक हो गया था कि उसकी रानी से उसके भाई हरदौल के साथ संबंध हैं। लिहाजा उसने रानी से हरदौल को ज़हर देने को कहा। रानी के ऐसा न कर पाने पर खुद को निर्देष साबित करने के लिए हरदौल ने खुद ही जहर पी लिया और त्याग की नई मिसाल कायम की।आज भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की आवक अधिक रहती है
बुंदेलाओं का राजकाल 1783 में खत्म होने के साथ ही ओरछा भी गुमनामी के घने जंगलों में खो गया और फिर यह स्वतंत्रता संग्राम के समय सुर्खियों में आया। दरअसल, स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद यहां के एक गांव में आकर छिपे थे। आज उनके ठहरने की जगह पर एक स्मृति चिन्ह भी बना है।
बेतवा नदी के किनारे जहांगीर महल
बुन्देलों और मुगल शासक जहांगीर की दोस्ती की यह निशानी ओरछा का मुख्य आकर्षण है। महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी बने हुए हैं। तीन मंजिला यह महल जहांगीर के स्वागत में राजा बीरसिंह देव ने बनवाया था। वास्तुकारी द्मद्मकी दृष्टि से यह अपने जमाने का उत्.ष्ट उदाहरण है।लेकिन धीरे धीरे खण्डहर बनते जा रहे है। यह महल ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में एक है। इसका निर्माण मधुकर शाह ने 17 वीं शताब्दी में करवाया था। राजा बीरसिंह देव उन्हीं के उत्तराधिकारी थे। यह महल छतरियों और बेहतरीन आंतरिक भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। महल में धर्म ग्रन्थों से जुड़ी तस्वीरें भी देखी जा सकती है।
राम मैं रानी भत्तिअगाध
एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से .ष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी राम भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की जो मूर्ति ओरछा में विद्यमानहै यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्येदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छडदारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर , राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है।

शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *