नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नागरिक हितों के लिए काम करने वाले संगठनों को विदेशी कोष प्राप्त करने से नहीं रोका जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि जो संगठन बिना राजनीतिक लक्ष्य के आंदोलन जैसे असहमित के वैध तरीकों से नागरिकों के हितों का समर्थन करता है उसे राजनीतिक प्रकृति का संगठन घोषित कर विदेशी कोष प्राप्त करने से नहीं रोका जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि राजनीतिक दलों द्वारा विदेशी कोष जुटाने के लिए जिन संगठनों का इस्तेमाल किया जाता है वे कड़े विदेशी चंदा (नियमन) कानून (एफसीआरए) से नहीं बच सकते, जब इस बारे में ठोस सामग्री मौजूद हो। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र किसी संगठन को विदेशी चंदा हासिल करने के अधिकार से वंचित करने से पहले कानून की प्रक्रियाओं और नियमों का कड़ाई से पालन करेगा। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि ‘बंद’ और ‘हड़ताल’ जैसे वैध तरीकों से जनहित का समर्थन करने वाले संगठन को विदेशी कोष हासिल करने के उसके कानूनी अधिकारी से वंचित नहीं किया जा सकता है। इसने कहा कि जो संगठन सक्रिय राजनीति या पार्टी राजनीति में शामिल नहीं है वे एफसीआरए के नियम 3 (छह) के तहत नहीं आते। अदालत ने कहा कि एफसीआरए के नियम 3 (छह) के मुताबिक जो संगठन ‘बंद’ या ‘हड़ताल’, ‘रास्ता रोको’, ‘रेल रोको’ या ‘जेल भरो’ जैसे राजनीतिक कार्यों के माध्यम से आदतन जनहित के कार्यों का समर्थन करते हैं उन्हें भी राजनीतिक प्रकृति का संगठन घोषित किया जा सकता है। अदालत ने गैर सरकारी संगठन इंडिया सोशल एक्शन फोरम की अपील पर यह फैसला दिया जिसने एफसीआरए की धारा 5 (1) और धारा 5 (4) (किसी संगठन को राजनीतिक प्रकृति का घोषित करने की प्रक्रिया) की संवैधानिक वैधता और अन्य नियमों को चुनौती दी है।