10 ट्रेड यूनियनों का भारत बंद, दिख रहा असर

नई दिल्ली। 10 ट्रेड यूनियन की तरफ से बुलाए गए भारत बंद का असर दिखने लगा है। आवाह्न किया गया है। बंद के चलते बैंकिंग के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट और दूसरी सेवाओं पर हड़ताल का असर दिखा। ट्रेड यूनियंस का कहना है कि सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देश भर से करीब 25 करोड़ लोग इस हड़ताल में शामिल हैं। आज हड़ताल की वजह से पब्लिक सेक्टर के बैंकिंग सर्विस जैसे पैसे जमा और निकासी और चेक क्लियरिंग पर असर पड़ा है। बैंकिंग के अलावा परिवहन और दूसरी जरूरी सेवा भी राष्ट्रव्यापी हड़ताल के चलते कहीं-कहीं बाधित हैं।

सरकार की जन विरोधी नीतियों का विरोध
10 ट्रेड यूनियंस ने साझा बयान जारी कर कहा, 2 जनवरी को बुलाई गई बैठक में श्रमिकों की किसी भी मांग पर आश्वासन देने में श्रम मंत्रालय पूरी तरह नाकाम रहा है। सरकार का रवैया श्रम के प्रति अवमानना है। इसमें कहा गया है, 8 जनवरी को होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल में हम 25 करोड़ मजदूरों के शामिल होने की उम्मीद करते हैं। हम हड़ताल के जरिए सरकार की श्रमिक विरोधी, जन विरोधी और राष्ट्र विरोधी नीतियों का विरोध करेंगे।

प्रदर्शनकारियों ने हावड़ा में रोकी ट्रेन
बंगाल में भारत बंद का बड़ा असर दिख रहा है। यहां सिलिगुड़ी में राज्य सरकार की बस के ड्राइवर हेल्मेट पहनकर बस चला रहे हैं ताकि अगर प्रदर्शनकारियों की ओर से कोई हमला किया जाता है, तो उसका सामना किया जा सके। जिन ट्रेड यूनियन ने भारत बंद बुलाया है, उनका दावा है कि केंद्र सरकार की ओर आर्थिक और जन विरोधी नीतियों को लागू किया जा रहा है। इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा लाए जा रहे लेबर लॉ का भी विरोध किया जा रहा है। स्टूडेंट यूनियन की ओर से शिक्षण संस्थानों में फीस बढ़ाने का विरोध किया जा रहा है। यूनियन की मांग है कि केंद्र सरकार का कर्मचारियों से बातकर नीतियों को आगे बनाना चाहिए।

10 ट्रेड यूनियन से जुड़े 25 करोड़ लोग शामिल
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी ने सोमवार को संयुक्त बयान में कहा कि देशव्यापी हड़ताल में कम से कम 25 करोड़ लोगों की भागीदारी की उम्मीद है। सरकार से श्रमिक विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों को वापस लेने की मांग करेंगे। बयान में कहा गया है कि श्रम मंत्रालय ने 2 जनवरी, 2020 को बैठक बुलाई थी, लेकिन वह अब तक श्रमिकों की किसी भी मांग पर आश्वासन देने में विफल रहा है।

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