नई दिल्ली, चुनाव आयोग द्वारा तारीखों के ऐलान के बाद बिहार में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. प्रदेश में तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को चुनाव होंगे जबकि 10 नवंबर को मतगणना होगी. ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला एनडीए और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन, दोनों आगामी विधानसभा चुनाव में जीत के दावे कर रहे हैं. आइए जानते हैं कि नीतीश के गृह जिला नालंदा में क्या है चुनावी समीकरण, कितना मजबूत है एनडीए.
नालंदा जिला सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है. इस लिहाज से लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव यह हाई प्रोफाइल बन जाता है. नालंदा लोकसभा क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें हैं. पिछले चुनाव यानी 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और जेडीयू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. लेकिन यहां की 5 सीटों पर जेडीयू ने जीत का परचम लहराया था. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार में एनडीए का नेतृत्व कर रहे नीतीश कुमार क्या इस बार गृह जिले में सातों सीटों पर एनडीए का कब्जा जमाने में कामयाब होंगे.
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में नीतीश कुमार की जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा थे. नीतीश कुमार लालू की राजद और कांग्रेस के साथ चुनाव में उतरे थे. उधर, एनडीए में भाजपा के साथ लोकजन शक्ति पार्टी (लोजपा) थी. इस बार परिस्थिति बिल्कुल बदल गई है. अब एनडीए में भारतीय जनता पार्टी, जेडीयू और लोजपा के साथ जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा भी है. ऐसे में नालांदा में नीतीश के लिए जिले की सात सीटें प्रतिष्ठा का सवाल बन गई हैं.
उम्मीदवार कोई भी हो, यहां नीतीश ही रहते हैं चेहरा
नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से आते हैं और उनका गांव कल्याण बिगहा नालंदा जिले में है. उनका गांव हरनौत विधासभा क्षेत्र में आता है, जबकि वह बाढ़ के बख्तियारपुर में पले-बढ़े हैं. ऐसे में नीतीश का पूरे जिले में दबदबा है. नीतीश कुमार अबतक 6 बार बिहार के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. ऐसे में उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने ही इलाके को पहचान दिलाई है. बिहार में लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव या फिर कहें कि उम्मीदवार कोई भी हो यहां नीतीश ही चेहरा होते हैं और उनके नाम पर ही वोट पड़ता है.
2019 लोकसभा चुनाव के समय तक नालंदा जिले में कुर्मी मतदाताओं की संख्या चार लाख 12 हजार थी. कुर्मी के साथ-साथ नालंदा में कुशवाहा और अति पिछड़े समुदाय की बड़ी आबादी है. यहां से नीतीश को वोट मिलने का एक बड़ा कारण यह भी है कि इन जातियों को उन्होंने जोड़कर रखा है. 2019 लोकसभा चुनाव के समय तक नालंदा जिले में यादवों का वोट करीब तीन लाख, जबकि मुसलमान वोटरों की संख्या एक लाख 60 हजार के करीब थी. हालांकि पिछले चुनाव में लालू-नीतीश एक साथ थे. इसलिए इस बार का जातीय समीकरण पिछली बार से बिल्कुल अलग होगा.
नालंदा लोकसभा क्षेत्र में कौन-कौन सी सीटें
नालंदा अपने प्राचीन इतिहास के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यहां विश्व की सबसे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौजूद हैं. जहां शिक्षा के लिए कई देशों के छात्र आते थे. भगवान बुद्ध ने सम्राट अशोक को यहीं उपदेश दिया था. हाल के वर्षों में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित किया है. यह बौद्ध अध्ययन का प्रमुख केंद्र बन गया है. नालंदा लोकसभा क्षेत्र में अस्थावां, बिहारशरीफ, राजगीर (अनुसूचित जाति), इस्लामपुर, हिलसा, नालंदा और हरनौत विधानसभा सीटें आती हैं.
2015 चुनाव में जेडीयू का परचम
2015 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर जेडीयू को जीत मिली थी. इनमें नालंदा, हरनौत, राजगीर, अस्थावां और इस्लामपुर सीट पर जेडीयू ने जीत का परचम लहराया था. जबकि एक हिलसा सीट पर राजद को जीत मिली थी और बिहारशरीफ सीट भाजपा के खाते में गई थी. नालंदा विधानसभा सीट पर बिहार सरकार में मंत्री श्रवण कुमार 6 बार से चुनाव जीत रहे हैं और उम्मीद है कि इस बार भी जेडीयू की तरफ से उन्हें ही टिकट मिलेगा और वो सातवीं बार जीत दर्ज करने के लिए मैदान में उतरेंगे.
राजगीर सीट पर जदयू के रवि ज्योति ने भाजपा के सत्यदेव नारायण आर्य को हराया था. बिहारशरीफ सीट पर पिछली बार भाजपा से डॉक्टर सुनील कुमार ने जीत दर्ज की थी. इससे पहले 2010 के चुनाव में डॉक्टर सुनील जेडीयू के टिकट पर विधायक बने थे. 2015 में नीतीश महागठबंधन में शामिल हुए तो वह भाजपा में शामिल हो गए और जीत हासिल की.
अस्थावां सीट से जदयू के प्रत्याशी जितेंद्र कुमार लगातार चार बार चुनाव जीतते आ रहे हैं. नीतीश के गृह जिला में जेडीयू की यह सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है. हरनौत विधानसभा सीट पर जेडीयू के हरिनारायण सिंह ने लोजपा के अरुण कुमार को हराया था. जबकि हिलसा सीट पर राजद के शक्ति सिंह यादव ने लोजपा के दीपिका कुमारी को हराया था. इसके अलावा इस्लामपुर सीट पर जेडीयू के चंद्रसेन प्रसाद ने वीरेंद्र गोप को मात दी थी.
बदले हालात में एनडीए का पलड़ा भारी
नीतीश के गढ़ नालंदा जिले में 2010 विधानसभा और 2015 के विधानसभा चुनावों के परिणामों की समीक्षा करने पर तस्वीर थोड़ी साफ होगी. 2010 के विधानसभा चुनाव वाले हालात इस बार यानी 2020 के चुनाव में बन रहे हैं. 2010 में भी जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और इस बार भी दोनों साथ हैं. जबकि 2015 में जेडीयू महागठबंधन में थी तो बीजेपी एनडीए की अगुवाई कर रही थी.
2010 के नतीजे पर नजर डाले में तो उस बार जिले की सात सीटों में से 6 पर जेडीयू को जीत मिली थी जबकि एक सीट भाजपा के खाते में गई थी. इस तरह से सात में सातों पर एनडीए ने कब्जा किया था. ऐसे में देखें तो 2020 के चुनाव में आरजेडी के लिए अपनी हिलसा सीट बचाने की चुनौती होगी, जबकि देखने वाली बात होगी कि क्या नीतीश के घर में क्या एनडीए सातों सीटें जीतकर क्लीन स्वीप करेगी.